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10 Jul 2016 · 1 min read

ग़ज़ल

क्यूँ नज़र से नज़ारे जुदा हो गये
लग रहा खुद नज़र में खुदा हो गये

इश्क़ में कर सका बस मैं इतनी वफ़ा
बेवफा से बफा , बेवफा हो गये

हैरतों में हमीं हैं कि तुम भी हो कुछ
किस लिए थे चले और क्या हो गये

हाल ख़त – ओ-किताबत जरा देखिये
रोग, पैसा , दवा औ दुआ हो गये

नींव रिश्तों की क्यूँ कर दरकने लगी
दिल के जज़्बात क्यूँ कर हवा हो गये

चीख मंदिर से लेकर के मस्जिद तलक
और क्या राह थी , ” बेजुबां” हो गये
…रविन्द्र श्रीवास्तव” बेजुबान”…..

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