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29 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल ..”..मुस्कुराते है आ गया कोई..’

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मुस्कुराते है आ गया कोई
ख्वाब बनकर है छा गया कोई

शोख दिलबर है वो हज़ारों में
शोहरत लाख पा गया कोई

एक चलता हुआ मुसाफिर था
छाँव गेसू बिठा गया कोई

अपनी तक़दीर में कहाँ था कुछ
बात अपनी सुना गया कोई

अब नहीं सहर हो रही ”बंटी ‘
जैसे सूरज को खा गया कोई
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रजिंदर सिंह छाबड़ा

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