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12 Aug 2016 · 1 min read

ग़ज़ल (गज़ब हैं रंग जीबन के)

ग़ज़ल (गज़ब हैं रंग जीबन के)

गज़ब हैं रंग जीबन के गजब किस्से लगा करते
जबानी जब कदम चूमे बचपन छूट जाता है

बंगला ,कार, ओहदे को पाने के ही चक्कर में
सीधा सच्चा बच्चों का आचरण छूट जाता है

जबानी के नशें में लोग क्या क्या ना किया करते
ढलते ही जबानी के बुढ़ापा टूट जाता है

समय के साथ बहना ही असल तो यार जीबन है
समय को गर नहीं समझे समय फिर रूठ जाता है

जियो ऐसे कि औरों को भी जीने का मजा आये
मदन ,जीबन क्या ,बुलबुला है, आखिर फुट जाता है

ग़ज़ल (गज़ब हैं रंग जीबन के)

मदन मोहन सक्सेना

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