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29 May 2017 · 1 min read

ग़ज़ल।मुझे आज अपनी कहानी बता दो ।

ग़ज़ल -‘मुझे आज अपनी कहानी बता दो’
बह्र -122-122-122-122
(फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन)
रदीफ़–दो
क्वाफ़ी /काफ़िये–नफ़ा, दगा, हटा, सुना, शफा, वफ़ा, जला, कटा आदि

ग़मों की बेमानी जफ़ाएँ भुला दो ।
मुझे आज अपनी कहानी बता दो ।।

बहे अश्क़ आँखे हुई बेमज़ा है ।
दिले दरमियाँ आज पर्दा हटा दो ।।

ख़ुदा के लिये आज कहके हक़ीक़त ।
वफ़ा बेवफ़ा की मुहब्बत सुना दो ।।

हुई शाम आयी अँधेरी घड़ी है ।
मिरे साथियां बेक़सी को भुला दो ।।

ज़रा सी कठिन है नयी राह लेकिन ।
करो फ़ैसला जामे उल्फत पिला दो ।।

सुरू तो करोगे नयी ज़िन्दगी फ़िर ।
हमारे लिये ही जरा मुस्कुरा दो ।।

तिरे दर्द की है दवा सिर्फ़ रकमिश’।
मिरे सांस से तुम ज़रा गुनगुना दो ।।

रकमिश=राम केश मिश्र

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