ख़ामोशी
खामोशी जब-
जुबां से उतर कर,
निगाहों में आ जाती है,
तो मुस्कराहट होठों होती,
लेकिन निगाहें तो, अंदर की बात-
बोलती-सी होती ,
आज फिर-तेरी नजरें-
मुझे परेशान कर रही हैं,
खामोशी जब-
जुबां से उतर कर,
निगाहों में आ जाती है,
तो मुस्कराहट होठों होती,
लेकिन निगाहें तो, अंदर की बात-
बोलती-सी होती ,
आज फिर-तेरी नजरें-
मुझे परेशान कर रही हैं,