” होठों पर पलने लगे हैं , मीठे मीठे छंद ” !!
अनुभूति छुअन की ,
दर्द मीठा सा जगाये !
झोंका नम हवा का ,
आँखों में सपने सजाये !
खिड़कियों के पट –
अब कहाँ हैं बंद !!
धीमी पदचाप ले ,
धूप है कभी छाँव !
अब यहां डिगने लगे ,
स्मृतियों के पाँव !
आँगने बौरा गयी है –
फिर यहाँ मधुगंध !!
हमने सजाये थे ,
किताबों में गुलाब !
ताज़ा दम रखे अभी ,
महक जाते ख़्वाब !
कसमसाती ज़िन्दगी है –
और कई अनुबंध !!
साँसों पर सजाई ,
प्यार की सरगम !
भुजदंड ढीले पड़ गये ,
ऐसे कसे बंधन !
प्रीत में रमने लगा मन –
हो गया निर्द्वन्द !!