हास्य-कविता: गधा गधा ही रहता है
मास्टर जी पढ़ा रहे थे,एक बच्चे पर चिल्ला रहे थे,अरे मूर्ख पढ़ता नहीं है,खेला करता है।
तू मुझे जानता नहीं,
मुझे पहचानता नहीं,
मैं गधे को आदमी बना सकता हूँ।
नाकों चने चबवा सकता हूँ।
पास से कल्लू भाई जा रहे थे।
मास्टर जी की बात सुन पा रहे थे।
कल्लू भाई चौंके,मास्टर को जा टोके।
मास्टर जी!आप गधे को आदमी बना सकते हो।
क्या मुझ पर यह कर्म फ़रमा सकते हो।
मेरे पास भी एक गधा है।
उसे आदमी बना दीजिए।
मुझ ग़रीब पर कृपा कीजिए।
मास्टर जी बोले,खुशी से डोले,
मैं तेरे गधे को आदमी बना दूँगा।
उसे रोजगार भी दिलवा दूँगा।
क़सम से!ज़िन्दगी बना दूँगा।
बस इतना-कर्म फ़रमा दीजिए।
गधे का एडमिशन करवा दीजिए।
एक साल बाद दर्शन दीजिए।
गधे को आदमी देख पाओगे।
रोज़गार में देख फूले नहीं समाओगे।
कल्लू भाई ने गधे का एडमिशन करवाया।
मास्टर जी ने गधा बेच खाया।
एक साल बाद कल्लू भाई स्कूल आया।
मास्टर को देख मुस्क़राया,लब हिलाया।
बोला मास्टर जी क्या मेरा गधा आदमी बनाया।
मास्टर जी मुस्क़राए और बोले-
आदमी क्या तेरे गधे को रोज़गार है दिलवाया।
कोर्ट में उसको वकील जो है मैंने लगवाया।
यह सुन कल्लू भाई फूला नहीं समाया।
उसके हृदय में खुशी का फूल खिल आया।
उसने मास्टर जी से पूछा।
मैं उसे कैसे पहचान पाऊँगा?
कैसे उसे प्यार से गले लगाऊँगा?
मास्टर जी बाले कोर्ट जाना।
वकील को हरी घास दिखाना।
प्यार से आवाज़ फिर लगाना।
वह पुरानी हरक़त दोहराएगा,
आप उसे पहचान फिर जाना।
कल्लू भाई हरी घास ले पहूँचे कोर्ट में।
असंख्य वकीलों को देख चौंके कोर्ट में
हिम्मत कर एक वकील को घास दिखाई।
वकील ने गुस्से में आ जोर की लात जमाई।
कल्लू को गधे की पुरानी हरक़त याद आई।
गुस्से में भर बोला-
कमबख़्त ये नादानी,
मैं हूँ तेरा स्वामी।
तू हो गया मुझपर आग-बबूला।
गधे से आदमी बनवा दिया,
वकील भी मैंने लगवा दिया,
पर लात मारना अब भी नहीं भूला।
लात मारना अब भी नहीं भूला।
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यहाँ वकीलों को मैंने फ़रिश्ता समझा है;जो सच की पैरवी कर न्याय दिलवाते हैं।
कल्लू भाई मूर्खता का पर्याय है।
मास्टर जी उदाहरण देकर समझाने वाला।
संदेश .हर प्राणी का अपना स्वभाव है,जिसे वह चाहकर भी बदल नहीं सकता।