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24 Sep 2016 · 1 min read

हाल- ए-दिल

मैं वाक़िफ़ हूँ इस हकीक़त से,तू मेरा हमराह नहीं हो सकता,
मैं भी मेरी शरीक-ऐ-हयात से बेवफा नहीं हो सकता,
फिर क्यूँ मेरा दिल तेरे लिए तड़प के आह भरता है,
जबकि इसे भी खबर है मेरा प्यार मुक़म्मल नहीं हो सकता,
इश्क़ है मुझे मेरी हमसफ़र से इस बात से इक़रार है,
मुहब्बत मुझे तुझसे हो गयी है मैं इंकार नहीं कर सकता,
चल तो सकता हूँ मैं तेरे साथ एक साये की तरह,
मुझे अफ़सोस है मैं तेरा हमसाया नहीं हो सकता,
उस वक़्त थामा था हाथ मेरा उसने जब मैं टूट रहा था,
मैं उसको भी तो टूटने नहीं दे सकता,
अब इस नादाँ दिल की धड़कनों को किस तरह समझाऊँ,
ये अब किसी और के लिए नहीं धड़क सकता,
मेरा रूह का रिश्ता है मेरी शरीक-ऐ-हयात के साथ,
अब ये किसी को अपनी रूह में शरीक नहीं कर सकता।

“संदीप कुमार”

Language: Hindi
753 Views
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