हर रात मै शिव से मिलता हूँ…
“हा हर रात मै शिव से मिलता हूँ…
बंद आँखों में ताण्डव रचता हूँ…
मै खुद ही खुद से यू मिलता हूँ…
पलक गिरा हृदय तक फिरता हूँ…
ख़्वाबो का सँसार यही पिरोता हूँ…
मन मै नई आस यही संजोता हूँ…
चन्दा को सर पर संजोकर…
सूरज का आव्हान यही तो करता हूँ…
बीते पलों से कुछ सीखकर..
नई सृष्टि का सृजन यही फिर करता हूँ…
हा हर रात मै शिव से मिलता हूँ…
बंद आँखों में ताण्डव रचता हूँ…”
✍कुछ पंक्तियाँ मेरी कलम से : अरविन्द दाँगी “विकल”