हर मर्द का दर्द
हर मर्द का दर्द
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कान्धे पर झोला लिए
निकलने लगे बाजार,
लाना था घर के लिए
सब्बजी भाजी अचार।
सामने से तभी श्रीमति जी आई
थोड़ी सी सकुचाईं
पर तनिक नहीं घबराईं
और धीरे फरमाईं।
कहाँ चल दिए आप?
कुछ तो बोलिए जनाब।
मैंने अपना मुह खोला
और सुमधुर स्वर में बोला
प्रिय बाजार जाने की तैयारी है
किन्तु तुम्हे ऐन वक्त
यह टोकने की कैसी बीमारी है।
मेरे ये शब्द लगे उन्हे भारी
सुनकर अपनी बीमारी
नथुने उनके फूलने लगे
अब तक थे बन्द मुंह
धीरे से खुलने लगे।
कड़क स्वर में बोलीं
जहाँ जाना हो जाईये
पर जल्द ही आईयेगा
रास्ते में किसी सौतन से
नजरे ना मिलाईयेगा।
उनकी बाते सून कर
मैं थोड़ा सा झल्लाया
चिल्ला न सका
धीरे से फरमाया
अरे भाग्यवान
मैं कभी भी ऐसा काम ना करूंगा
एक जन्म क्या
अगले सात जन्मों तक
बस तेरा ही रहूंगा।
श्रीमति जी इठलाई
कन्खी ताक मुस्काई
और हस के फरमाईं।
चलिए चलिए
बात बनाना आपका काम है
इसी लिए तो, इस शहर में
आपका इतना नाम है।
जाईये पर जल्दी आइयेगा
सब्जी खरीदते वक्त
मुफ्त का धनीया ना भूल जाईयेगा।
जल्द आईये
हम आपका इंतजार करेंगे
आज आपके लिए
फिर से सोलह श्रृंगार करेंगे।
आप ही से मेरी दुनिया
और पूरा संसार है,
आप ही को न्योछावर
तन मन सारा प्यार है।
ये बात सून – सून
थक चूका था,
सत्य बकूं तो
पक चूका था।
बोला मैं अब जाने भी दो
वर्ना देर हो जायेगी।
सब्जी गर नहीं मिला
फिर तूं क्या पकायेगी।
बक्सदे मुझे
तेरा मुझपे उपकार होगा,
यही मेरे लिए शायद
“सचिन” सच्चा प्यार होगा।
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
9560335952
3/2/2017