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31 Aug 2017 · 1 min read

हम अकेले

आज फिर दिखने लगा अक्स तेरा
धुंधली यादों के झमेले में।
तुम तो बस छोड़ गये हमको
उलझे हम तो अकेले में।
साथ तो तुमने कभी का छोड़ दिया
मेरा इस बैरी दुनिया के मेले में।
चलना चाहा था सदा हमने तो
सही राहों पर ही लेकिन
इस दुनिया ने दिए कई बार
धक्के बहुत भीड़ों के रेले में।
दिल से हर बार कहा कि
यह जग नहीं है तेरे काबिल।
क्या करें बात समझ में बैठी नहीं
इस दिल ओ दिमाग अलबेले में।
दिल तो उलझा है तड़क-भड़क में
दिखावटी दुनिया के अंदाज रुपहले में।

–रंजना माथुर दिनांक 31/08/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
@ copyright

257 Views
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