हमारी बेटियाँ
माँ का आईना होती है बेटियाँ
संस्कृति संस्कारों को संजोती हैं बेटियाँ
कोमल भावनामय होती हैं बेटियाँ
रीति रिवाजों को सहेजतीं हैं बेटियाँ
कहीं बोयीं कहीं रोपी जाती हैं बेटियाँ
धान की फसल सी लहलहातीं हैं बेटियाँ
पिता का गुरूर होती हैं बेटियाँ
समाज में मान सम्मान बढ़ाती हैं बेटियाँ
भाई बहन का सौजन्य साथ लेती हैं बेटियाँ
हमनिबालों हमसायों को तरस जाती हैं बेटियाँ
ससुराल में रचबस जाती हैं बेटियाँ
नव समरसता में समा जाती हैं बेटियाँ
मायके ससुराल के बीच सेतु होती हैं बेटियाँ
दोनों के मान मर्यादा का ख्याल रखती हैं बेटियाँ
गोरैया सी चहकती लहकती हैं बेटियाँ
एक मुंड़ेर से दूजी मुंड़ेर चली जाती हैं बेटियाँ
© नीता सिंह बैस