सूर घनाक्षरी
पत्थर पहाड़ पत्ते, तपाये तपन तपें, आग आज अजगर, सा मुख फैलाये
आदमी आकुल अब, पशु- पक्षी दुखी सब, बुझाए बुझे न बुरे, हालात बनाये
पंख पसारे पवन, और उसारे अगन, अभिमानी मेघ बन, देखो इतराये
वन विभाग है कित, चिंता से चिंतित चित,यत्न युक्ति करो कोई, आग बुझ जाये