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21 Feb 2017 · 1 min read

^^ सुन ले सब की पुकार मेरी माँ ^^

तेरे भवन के बाहर, कितनी जनता है बेकरार
माँ सब को दर्शन देती है हर बार
कुछ आते हैं हार बार, कुछ मुझ से हैं बेकरार
तून सच्ची सर्कार, सच तून सच्ची सरकार !!

पर ऐसा बंधन बाँध दिया , मन तेरी तरफ रहता है
आना भी चाहूं दरबार , पर मेरा रसता रोक देता है
याद कर के बस तुझे घर से प्रणाम करके,रूक जाता हूँ
बता कैसे मिलूँ मैं तुझ से “”माँ”” आके हर बार !!

गृहस्थी की बेडीओं ने बाँध के रख दिया
तन रहता है यहाँ , मन तेरे दर की और रख दिया
किसी आशा की तरफ उठा के ध्यान रखता हूँ
तून देदे अपना आशीर्वाद बस यही आस रखता हूँ !!

सब कुछ तो तूने दे दिया, क्या अब मांगू तुझ से
मांगी थी एक मन्नत , की सारा जहान दे दिया तूने
मेरा खजाना तो रोजाना खाली सा हो जाता है “माँ”
अपनी किरपा का खजाना बरसा यही आस रखता हूँ !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
456 Views
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