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3 Sep 2017 · 4 min read

सारोकार:- “पत्रकारिता–गिरता स्तर”

“पत्रकारिता–गिरता स्तर”
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पत्रकारिता की शुरुआत भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में हुई थी।उन दिनों प्रिंट मीडिया प्रमुख रूप से समाचार पत्रों और ंपत्रिकाओं में देश की आज़ादी की लड़ाई में लोग बड़ चड़ कर हिस्सा ले रहे थे।इसलिये देश के लिये कुछ भी कर गुजरने की इत्छाशक्ति लिये थी।
गणेश शंकर विद्यार्थी ने आज़ादी के लिये धारदार लेख लिखे।जेल तक गये।प्रेमचंद,महात्मा गांधी नेहरू जैसे बड़े नाम भी समाचार पत्रों में लेख आज़ादी के लिये लेख लिखे।।
हम पत्रकारिता की बात करते हुये सिर्फ राजनैतिक पत्रकारिता की बात करते हैं जबकि धार्मिक,विज्ञान की,अर्थशास्त्र मेडिकल आदि विषयों पर भी गंभीर पत्रकारिता होती है।
हनुमान प्रसाद पोद्दार जैसे लोगों ने अपना सब कुछ बेचकर गीताप्रैस गोरखपुर की स्थापना की और स्वयं मरते दम तक लेखन में योगदान देते रहे।श्रीराम शर्मा आचार्य ने वेदों और उपनिषदों को पुनर्जीवित करने का कार्य किया जिनको आम आदमी को छूने भी नहीं दिया जाता था।
स्वतंत्रता प्राप्ती के बाद धीरे धीरे समाचार पत्रों के लिये लिखने वाले पत्रकारों में जोश क़ायम रहा।स्व.रामनाथ गोयंका ने इंडियन एक्सप्रेस की स्थापना की,और अपने पत्रकारों को खोजी पत्रकारिता के लिये प्रोत्साहित किया।वे स्वयं भी लिखते थे।अरुण शोरी जैसे पत्रकारों की व्यवस्था के विरुध्द लड़ाई कौन भूल सकता है।जिसने अब्दुल रहमान अंतुले के सीमेंट घोटाले में भ्रष्टाचार को तार तार करके रखदिया और उन्हें महाराष्ट्र के मु.मंत्री पद से इस्कीफा देना पड़ा था।श्रीमती गांधी के हर दबाव को रामनाथ गोयंका ने झेला और मुँह तोड़ जवाब दिया।
उस समय “टाईम्स आफ इंडिया”एक मध्य मार्गी अख़बार माना जाता था।यह समूहबहुत पत्र पत्रिकायें निकाला करता था।धर्मयुग,illustrated weekly,सारिका जैसी साहित्यिक पत्रिका।ख़ुशवंत सिंह ,”इलस्ट्रेटिड वीकली”;धर्मवीर भारती “धर्मयुग” के संपादक थे।स्वर्णिम युग था पत्र-पत्रिकाओं का।
हिंदुस्तान टाईम्स शुरु से ही दल विशेष का समर्थक माना जाता रहा है।इसने “साप्ताहिक हिंदुस्तान” जैसी स्तरीय पत्रिकायें पाठकों को दीं।
उस समय के पत्रकार जीवन के मूल्यों को अधिक महत्व मिलता था।
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जब से टीवी मीडिया ने पाँव पसारने शुरु किये हैं,पत्रकारिता के सारे नियम ताक पर रख दिये गये हैं।केवल एक ही नियम रह गया है,वह है टी आर पी(television ratings points) में सबसे उपर रहने का।अपने आप को नं: एक पर रखने के चाव में सत्य पीछे रह गया है।
ख़बर की जाँच परख कर के जो परिपक्व होता था पत्रकार उसकी समाज और देश में इज़्ज़त और सम्मान मिलता था।
आज का पत्रकार सनसनी फैलाने वाला होना चाहिये,बाईट लेने वाला चाहिये,सत्यता जाये भाड़ में।
लोगों रो अब पता है कि कौन सा चैनल किस दल के पक्ष में बोल रहा है।नेताओं को भी पता है कि किस को हंस कर बाईट देनी है किस को नज़रअंदाज़ करना है।
डिबेट का स्तर चैनलों पर कैसा होता है,यह सब जानते हैं,अधकचरे सत्य और आंकड़ों से सत्य सिद्ध करने की कोशिश की जाती है।
झूठा कैप्शनस दिखाओ,दर्शक जुटाओ फिर भूल जाओ की पत्रकारिता रह गई है।खेद तक प्रकट नहीं करते।
पहले नेताओं को डिबेट में ध्यान से सुना जाता था अब चैनल बदल दिया जाता है।
नियामक संस्था (TRAI) भी जैसे हाथ पर हाथ धर कर बैठी है।यदि कुछ आवाज़ उठाये तो आज़ादी के अधिकारों का हनन कह कर चुप कराने का प्रयत्न किया दाता है।
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आजकल एक नया मीडिया प्रचलन में बो रहा है वह है “सोशल मीडिया”।ट्विटर,फ़ेसबुक,व्हाटस एप,स्काईप,आदि इंटरनैट के द्वारा समाज में पैठ बना रहे हैं।
यू ट्यूब भी लाईव न्यूज़ के माध्यम से नया प्रचलन बड़ा रहा है।
इन सब का उपयोग सत्यता के लिये कम झूठ फैलाने के लिये ज्यादा होता है।पुरानी फोटोज़ के साथ नयी घटना को जोड़कर घटना का स्वरूप बदल दिया जाता है।लोगों को भ्रमाने का काम ज्यादा हो रहा है।यहाँ तक की चुनावों में भी यह निर्णायक भूमिका अदा कर रहे हैं।
टैक्नोलोजी का दुर्उपयोग चरम पर है।इसको रोकने के लिये सरकारों के भी हाथ बँधे हैं।सरकार एक क़दम उठाती है तो लोग उसकी काट निकालने में देर नही करते।
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उपरोक्त बातें लिखते हुये एक महत्वपूर्ण बात लिखनी भूल गया कि रेडियो ने भी श्रव्य माध्यम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।विभिन्न अवसरों पर जैसे चुनाव परिणामों पर,१९६२,१९६५,१९७१ के युद्ध में, हम में से कई लोग बी बी सी सच्चाई जानने के लिये सुना करते थे।आज बी बी सी की हालात क्या है सब जानते हैं?
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पत्रकारिता लोगों तक सत्य पहुँचाने का पवित्र कार्य है।यदि यह भी कुलषित हो गया तो लोग झूठ की दुनियाँ मे विचरण करेगे।आभासी दुनिया मे तो हैं ही।
लोकतंत्र के इस चौथे पाये की चूलें हिल रही हैं।यदि इसे समय पर सुसंचालित नहीं किया गया तो इसकी मौत निश्चित है।सिर्फ कमाई के लिये नही सच्चाई के लिये कुछ जज़्बा रखो।केवल पैसे के लिये,विज्ञापनों के लिये इस पवित्र कार्य को गर्त में मत धकेलो यही प्रार्थना है।
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कैसा लगा लेख ?

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 1 Comment · 339 Views
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