Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Dec 2016 · 1 min read

सादगी में आनन्द

सादगी में आनंद

सादगी का आनंद जो भी जान गया एक बार
फिर नामो-शोहरत की सारी , दौड़ हैं ये बेकार
वैर भाव और अहंकार फिर बचे न कोई शेष
स्वर्ग सरीखा दिखता है , उसको सारा संसार

इक बार कभी दौलत की दौड़ को छोड़के देख
शोहरत की तृष्णाओं के ये बंधन तोड़के देख
कितना आनंद है जीवन में , होगा तभी ये ज्ञान
सादगी से एक बार कभी नाता जोड़ के देख

ये मृग तृष्णाएँ हैं कितनी जीवन में सबके संग
कितनी हैं बेचैनी फिर भी खुशियों के हैं दंभ
कोई दौलत के पीछे तो कोई शोहरत के पीछे
पर मद में नहीं कहीं हैं बस सादगी में आनंद

पर मद में नहीं कही हैं बस सादगी में आनंद

सुन्दर सिंह

30.11.2016

Language: Hindi
1322 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"आज़ादी के 75 सालों में
*Author प्रणय प्रभात*
खुद ही खुद से इश्क कर, खुद ही खुद को जान।
खुद ही खुद से इश्क कर, खुद ही खुद को जान।
विमला महरिया मौज
हिंदू सनातन धर्म
हिंदू सनातन धर्म
विजय कुमार अग्रवाल
जीवनसंगिनी सी साथी ( शीर्षक)
जीवनसंगिनी सी साथी ( शीर्षक)
AMRESH KUMAR VERMA
कितने दिलों को तोड़ती है कमबख्त फरवरी
कितने दिलों को तोड़ती है कमबख्त फरवरी
Vivek Pandey
(6) सूने मंदिर के दीपक की लौ
(6) सूने मंदिर के दीपक की लौ
Kishore Nigam
इन्सानियत
इन्सानियत
Bodhisatva kastooriya
2545.पूर्णिका
2545.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
तमाम आरजूओं के बीच बस एक तुम्हारी तमन्ना,
तमाम आरजूओं के बीच बस एक तुम्हारी तमन्ना,
Shalini Mishra Tiwari
दिन गुज़रते रहे रात होती रही।
दिन गुज़रते रहे रात होती रही।
डॉक्टर रागिनी
"अजीब दस्तूर"
Dr. Kishan tandon kranti
निर्मेष के दोहे
निर्मेष के दोहे
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
पहाड़ी भाषा काव्य ( संग्रह )
पहाड़ी भाषा काव्य ( संग्रह )
श्याम सिंह बिष्ट
क्यों ना बेफिक्र होकर सोया जाएं.!!
क्यों ना बेफिक्र होकर सोया जाएं.!!
शेखर सिंह
पसरी यों तनहाई है
पसरी यों तनहाई है
Dr. Sunita Singh
फूल और खंजर
फूल और खंजर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
जीवन की यह झंझावातें
जीवन की यह झंझावातें
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
दशरथ मांझी होती हैं चीटियाँ
दशरथ मांझी होती हैं चीटियाँ
Dr MusafiR BaithA
खामोशियां आवाज़ करती हैं
खामोशियां आवाज़ करती हैं
Surinder blackpen
बरसातें सबसे बुरीं (कुंडलिया )
बरसातें सबसे बुरीं (कुंडलिया )
Ravi Prakash
सत्साहित्य कहा जाता है ज्ञानराशि का संचित कोष।
सत्साहित्य कहा जाता है ज्ञानराशि का संचित कोष।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
अंसार एटवी
All you want is to see me grow
All you want is to see me grow
Ankita Patel
मुक्तक-
मुक्तक-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
एक समय वो था
एक समय वो था
Dr.Rashmi Mishra
गर्मी की छुट्टियां
गर्मी की छुट्टियां
Manu Vashistha
चरित्र राम है
चरित्र राम है
Sanjay ' शून्य'
उदारता
उदारता
RAKESH RAKESH
दिल को सिर्फ तेरी याद ही , क्यों आती है हरदम
दिल को सिर्फ तेरी याद ही , क्यों आती है हरदम
gurudeenverma198
तुम्हें अहसास है कितना तुम्हे दिल चाहता है पर।
तुम्हें अहसास है कितना तुम्हे दिल चाहता है पर।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
Loading...