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14 Aug 2017 · 1 min read

सर पे कैसी मुसीबत बड़ी आ गई

ग़ज़ल

सर पे कैसी मुसीबत बड़ी आ गई।
देखिये फैसले की घड़ी आ गई।

साँस लेना मुनासिब भी लगता नही
ये हवा किस कदर नकचढ़ी आ गई।

दिल के साँपो को हम मार पाते नहीं,
साँप आया जो घर इक छड़ी आ गई।

ईंट पत्थर लगाकर मकां जब बना
लो हिफाजत को उसके कड़ी आ गई।

अब चमन में कहीं फूल खिलते नहीं,
पतझरों की अजब सी लड़ी आ गई।

रौशनी के लिए ‘मन’ मचलने लगा,
उसको बहलाने को फुलझड़ी आ गई।

मंजूषा मन

1 Like · 1 Comment · 267 Views
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