समय बुला दो
समय बुला दो सुभाष चंद्र को वो
‘जय हिन्द’ गा कर जोश भरें,
खून के बदले आजादी दे दें
जनता का सब प्रलाप हरे ।
समय बुला दो भगत सिंह को
वो इंकलाब फिर ले आए ,
जिंदाबाद मातृभूमि को
घाटियों में भी कर जाए ।
समय बुला दो रानी लक्ष्मी को
वो जोश बहनों में भर जाए ,
अपनी धरती की रक्षा हित
मान न उसका गिरा पाए ।
समय क्यों तुमने असमय ही
अगणित क्रांतिवीरों को छीना ,
उन बिन मेरे देश की धरती
हुई वीरता भूषण हीना ।
यदि वे न जाते असमय तो
देश मेरा न बिखरा होता,
सत्ता मद में खोने वालों का
यहाँ न कोई बसेरा होता ।
बीते समय आज आकर देखो
शर्म तुमको भी आ जाएगी,
जब ‘वंदे मातरम्’ कहने पर भी
रोक नजर यहाँ आएगी ।
तिरंगे को सलामी देने से भी
एक धर्म जहाँ खंडित होता है,
मातृभूमि का वंदन भी अब
एक धर्म से जोड़ा जाता है ।
क्या हो गया है आर्यवर्त को
नहीं क्रांतिवीर शीश उठाते हैं ,
परोपदेश देकर के सब
स्वयं पीछे हट जाते हैं ।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई
ऊपर से तो दिखते भाई हैं,
सच पूछो तो नेतृत्व ने इनमें
बोयी एक गहरी खाई है ।
समझ नहीं आता क्या होगा
बिखराव ये कैसे संभलेगा ?
टूट रहे जन मनोबल को
कैसे नेतृत्व कोई जोड़ेगा ?
कौन वो क्रांतिवीर होगा
जो दायित्व अपना निभाएगा ,
बिखरे हुए अखंड भारत को
फिर मुक्ताहार बनाएगा ।।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली-47