सब कुछ बिकता है….
कोई नाम बेचता है
कोई काम बेचता है
यहाँ सस्ते मे कोई
ईमान बेचता है।
देखो तो हर ओर
लगी है दुकानें
कोई फुल कोई पान
कोई जाम बेचता है।
देखो जिसे तुम
जहां में जहाँ भी
मक्कारी है मिश्रित
ब्यवहार बेचता है।
रिश्ते सजे हैं
यहाँ हर मकान में
पर सपने हों पूरे
स्वार्थ बेचता है।
करें क्या कुछ ऐसा
मिले नाम जग में,
यहीं चाह लेकर
संस्कार बेचता है।
बीकती है पानी
और बीकता है जीवन,
ले नाम ईश्वर
अंधकार बेचता है।
न यहाँ कोई अपना
ना कोई पराया
किन्तु कोई रिश्ते
तमाम बेचता है।
आजादी के नाम
सजी हैं दुकानें,
दुकानों पे राष्ट्र का
सम्मान बेचता है।
महा दान शिक्षा
कहते सभी है,
फिर भी एक शिक्षक
ज्ञान बेचता है।
स्त्री रुप देवी
करता है पूजा
पूजा के नाम
प्रसाद बेचता है।
पैसों के खातिर
ये करता है कुछ भी
नारी की अस्मत
खुलेआम बेचता है।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”