” —————————————– सपने हुए कपूरी ” !!
याचक बनना कौन चाहता , लेकिन है मज़बूरी !
घुटनों पर हम आ बैठे हैं , कमर झुक गयी पूरी!!
देना है अधिकार आपका , हम हैं हाथ पसारे !
हमने नहीं दिया होगा कुछ , हसरत रही अधूरी !!
संतानों की चाहत में है , दर दर ठोकर खाई !
आज उन्होनें पैदा की है , दिल से दिल की दूरी !!
पेट काट कर जिनको पाला , भूले भूख हमारी !
अपनों ने हमको ठुकराया , सपने हुए कपूरी !!
लगी ज़िन्दगी एक जुए सी , अकसर हम हारे हैं !!
यहां दांव पर लगी हुई है , अपनी उम्र भी पूरी !!
मिली नफरतें प्यार कहां है , आशाओं पर पानी !
अपनी मंज़िल हमें पता है , हैं रखे हुए सबूरी !!
बड़ा कठिन है सफर हमारा , कल की खबर किसे है!
आज यहां टुकड़ा टुकड़ा है , वक़्त की हेराफेरी !!
बृज व्यास