सपने ना दिखाओ
***यू सपने ना दिखाओ***
मंदिर बनाओ या न बनाओ
किन्तु मेरे राम को यूं न सताओ,
जो जग के सपने साकार करे
उन्हें हर बार यूं सपने तो ना दिखाओ।
वो मर्यादा पूरुषोत्तम है
हर एक पूरुष से इस जग में उत्तम है,
उनकी जन्म भूमी को विवादित न बनाओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
जिसने सोने की लंका मित्र को दान दी
वनवास सहे किन्तु पितु वचन को मान दी,
उनके यश कीर्ति को यूं दाग न लगाओ
उन्हें हर बार यू सपने तो न दिखाओ।
जिनके फैसले स्व हित से दूर किनतु अमीट थे
अपने या पराये सबपे उनके फैसले सटीक थे,
ऐसे धर्मात्मा को यूं दाग न लगाओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
जो दोस्त क्या दुश्मन को मान देते थे
बदले में कभी किसी से कुछ ना लेते थे,
ऐसे दानवीर को स्वार्थ साधन ना बनाओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
जो सबरी के जुठे बेर पल में खा गये
भक्ति का प्रतीक बन जन-जन में छा गये,
अहिल्या तारणहार को यूं तुच्छ न बनाओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
जिनके नाम से जग का उद्धार होता है
जिनके प्राक्रम से दुष्टो का संघार होता है
उन्हे मंदिर के नाम आंखमिचौनी न खेलाओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
बस एक पल में राज्य त्याग दी जिसने
ऐसा इस लोभी जग में कभी किसी को देखा किसीने,
ऐसे त्यागवान को तुम लालची न बताओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
वो इस जग के सृजन कर्ता
वहीं तो तारणहार है,
पल में करे फैसले उन्हे
न्यायालय का खाक न छनवाओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
धर्म संस्कार है यह धंधा नहीं
राम भक्त संस्कारी है किनतु अंधा नही,
ऐसे हर बार उसे दिलासा न दिलाओ
उन्हें हर बार यूं सपने तो न दिखाओ।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
1/4/2017