” —————————————– सपने कैसे पालें ” !!
कूट कूट पाषाण घड़े हैं , हैं आकार निराले !
जिन हाथों में शैशव पलता , उन हाथों में छाले !!
हाड़ तोड़ मेहनत है उस पर , यहां वहां की भटकन !
मेहनत को कोई तोले है , कोई हमें खंगाले !!
यहां वहां परिवार भटकता , बंजारों सा जीवन !
जाने कब बदलेगें दिन अब , हैं किस्मत पर ताले !!
वोट दिए हैं हमने भी पर , सरकारें ना जागी !
आज सुबह को खाना है तो , साँझ पड़े है लाले !!
भूखे पेट भजन ना होता , रात दिवस श्रम करते !
हाथ अगर फिर भी खाली हो , सपने कैसे पालें !!
पल पल हमने कठिन जिया है , पल पल हुई परीक्षा !
हंसी मिली है पलभर की तो , हम हैं इसे संभाले !!
आंखों में विश्वास है कायम , दिन अपने बदलेगें !
पढ़ लिख कर आगे बढ़ ललवा , खुशियां करी हवाले !!
बृज व्यास