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6 Oct 2017 · 1 min read

सदा -ऐ -रूह (ग़ज़ल)

हो रहा है ज़िक्र क़यामत का ज़रा सुन,
खौफ से कांप उठेंगे तेरे जीस्त -ओ-जान .

दिल हुआ आशना ,दे दिया खुद को आजार ,
खून के रंग में क्यों रंग लिया तूने ईमान .

सौदा किया था तुमने मेरा किसके साथ?
यह पड़ी हैतेरी दौलत कमज़र्फ ऐ इंसान !

सच्चे इश्क की चाहत या सुकून पल भर का,
बाज़ार-ऐ-दुनिया में!फिर भी दागदार किया दामां .

तुमने मुझे रुसवा किया ताउम्र ये ले मैं चली !
यह रहा तेरा नामुराद जिस्म, देख ओ नादान!

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