सच्चाई से मिल गया हु
दुनिया की नज़र मे मै गुम गया हु।
सच पुछो तो सच्चाई से मिल गया हु।
कभी शोलो से खेला करता था,
पर आज शबनम से जल गया हु।
गैरो से गले लग कर ईद और दिवाली मनाता रहा,
जमी पर चलने क्या, लगा कि अपनो को खल गया हु।
मुझे संभालना काफिलो का जिम्मा है,
पैर जख्मी है, फिर भी चल गया हु।
शाहीने परबाज मुझे ढुङो,
बजंर जमी मे भी खिल गया हु।
✍ राजेन्द्र कुशवाहा