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16 Aug 2016 · 1 min read

संजीदा तबियत की कहानी नहीं समझे

संजीदा तबियत की कहानी नहीं समझे
आँखो में रहे फिर भी वो पानी नहीं समझे

एक शेर हुआ यूँ कि कलेजे से लगा है
दरया में उतर कर भी रवानी नहीं समझे

क्या खत में लिखा जाए कि समझाऐ उन्हें हम
जो सामने रह कर भी ज़बानी नहीं समझे

बचपन को लुटाया है जवानी के लिए यार
हम लोग जवानी को जवानी नहीं समझे

पहले तो कहा ‘राव’ कोई शेर सुनाओ
फ़िर दोस्त मेरी बात के म’आनी नहीं समझे

– नासिर राव

1 Comment · 501 Views
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