श्राद्ध
श्राद्ध पक्ष आया है फिर से
कौओं ने इक सभा बुलाई
घर घर की खबरें लाकर के
इक दूजे को बैठ सुनाई
इक बोला जिस घर की छत पर
रोज में बैठा करता हूँ
उस घर मे बूढ़ों को निशदिन
मरते देखा करता हूँ
रोज लड़ाई उनके कारण
घर मे होती रहती हैं
बूढ़ी आंखें खोई खोई सी
आँसू भरी ही रहती हैं
फटे पुराने कपड़े पहने
आँगन में बैठे रहते हैं
टूटी ऐनक से अखबार
रोज पढ़ा वो करते हैं
और कौये भी बोले मिलकर
हमने भी ये देखा है
मर्यादा और संयम की भी
देखी टूटी रेखा है
रूखी सूखी ही खाकर बस
वक़्त गुजारा करते हैं
ये कड़वे घूँट अपमान के
चुपचाप पी लिया करते हैं
ऐसे घर मे श्राद्ध कराने
का बोलो क्या मतलब है
हलुआ पूरी खीर खिलाने
का रहा न कोई सबब हैे
करते हैं हम प्रण उस घर का
अन्न नहीं हम खाएंगे
जिस घर मे बूढ़ों का आदर
मान नहीं हम पाएंगे
डॉ अर्चना गुप्ता
06-09-2017