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1 May 2017 · 1 min read

,श्रम साधक मजदूर

मजदूरी के नाम पर,..मिले सेर भर धान !
इसमें कैसे खुद जिएं, खायें क्या …संतान?

सरकारें बदली कई,…..बदले कई वजीर!
श्रम साधक मजदूर की,मिटी कहाँ पर पीर!!

अपना कर देखी कई,…उसने हर तरकीब!
श्रम साधक मजदूर का,बदला नही नसीब!!

किसको देंहम दोष अब,किसका कहें कसूर !़
सोये भूखा पेट जब,..श्रम साधक मजदूर !!

करे मशक्कत रोज ही,.बच्चों से रह दूर!
फिर भी भूखा ही रहे,श्रम साधक मजदूर! !

दुनिया के आधार हैं,कृषक और मजदूर !
दोनों ही भूखे रहें,.. .दोनों ही मजबूर !!

पडे पौष की ठंड या,..रहे जेठ का घाम !
किस्मत में मजदूर की,लिखा कहाँ आराम ! !
रमेश शर्मा

Language: Hindi
1 Like · 251 Views
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