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28 Nov 2016 · 1 min read

शाम ढली हम घर चले….

शाम ढली हम घर चले
दिन भर मस्ती कर चले

रातें लाई घर हमें
सुबह हुई के फिर चले

इक दूजे के साथ में
छोड़ अपना डर चले

नंगे पाँव मोटर बिना
हम खुशियों की डगर चले

चाहिए जवानियां किसे
हम बचपन पे मर चले

बहार हो या हो खिजां
अच्छा है मिलकर चले

हिंदू मुस्लिम कौन हैं
इनसे हम उठकर चले

–सुरेश सांगवान’सरु’

1 Like · 498 Views
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