शब्द
शब्द ही ब्रम्ह है, शब्द है भावना।
शब्द से ही है जन्मा ये सारा जहाँ।
शब्द अनुराग है, शब्द है साधना।
शब्द के ही बिना सूना सारा जहाँ।
शब्द का ग्यान ना तो ये जीवन नरक।
शब्द के ब्याकरण को ऐ बन्दे परख।
शब्द है इक पवन, शब्द सागर भी है।
शब्द रस से भरा इक गागर भी है।
शब्द से उपजी है मन की हर कामना।
शब्द ही ब्रम्ह है…..
शब्द तुमने कहा, शब्द हमने सुना।
शब्द वो राग है, जिसको सब ने गुना।
शब्द का आदि ना,ना ही तो अन्त है।
शब्द परमात्मा का ही इक अंश है।
शब्द चारो युगो की करे सामना।
शब्द ही ब्रम्ह है……
✍आशीष पाण्डेय “दिवाकर”
१६/०८/२०१३