Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Jul 2016 · 4 min read

व्यंग — बुढापे की चिन्ता समाप्त ये व्यंग 3 /10/10 का है लेकिन इस बार फिर उम्मीद जगी है[ कल सपना जो आया!

व्यंग — बुढापे की चिन्ता समाप्त

आज कल मुझे अपने भविष्य की चिन्ता फिर से सताने लगी है। पहले 20 के बाद माँ बाप ने कहा अब जाओ ससुराल। हम आ गये। फिर 58 साल के हुये तो सरकार ने कहा अब जाओ अपने घर । हम फिर आ गये। फिर दामाद जी ने सोचा सासू मां अकेले मे हमे पुकारती रहेगी तो पहुँचा दिया ब्लागवुड मे। हम फिर आ गये। अब लगता है आँखें ,कमर ,बाजू अधिक दिन तक यहाँ भी साथ नही देंगे तो कहाँ जायेंगे? मगर भगवान हमेशा अपनी सुनता है जब पता चला कि महिला आरक्षण विधेयक पास हो रहा है तो अपनी तो बाँछें खिल गयी। बडी बेसब्री से आठ मार्च के एतिहासिक दिन का इन्तज़ार किया। क्यों कि हम जानते हैं नकारा,बिमार आदमी और कहीं चले न चले मगर राजनिती मे खूब चलता है। चलता ही नही भागता है< आस पास चमचे, विदेश मे बिमारी का ईलाज क्या क्या सहुलतें नही मिलती और फिर पैसा?___ उसे अभी राज़ ही रखेंगे और हम ने सोच लिया था कि जैसे तैसे इस बार जिस किसी भी पार्टी का टिकेट मिले ले लेंगे।पार्टी न भी हो आज़ाद खडे हो जायेंगे। मगर आठ तारीख ऐसी मनहूस निकली कि संसद मे हंगामा हो गया उस दिन तो आलू टमाटर ही हाथ लगे। अब देखिये न अगर औरत ही औरत के खिलाफ खडी न हो तो किसी भी काम का क्या मज़ा रह जायेगा । ये अपनी ममत दी अपनी ही बहनों के खिलाफ खडी हो गयी। अब इन्हें कौन समझाये कि अभी रोटी हाथ मे तो आने दो बाद मे छीनाझपटी कर लेते फिर चाहे हमारी चोटी ही हाथ मे पकड कर घुमा देना। मगर नही। धडकते दिल से अगले दिन यानी 9 मार्च का इन्तज़ार किया था मगर दी के तेवर देख कर दिल और धडक गया।,– शाम होते होते अपना तो हाल बेहाल था– डर था कि कहीं बिल पास होते होते रह गया तो अपना भविष्य तो चौपट हो जायेगा। भगवान ने सुन ली सारा दिन पता नही कितने देवी देवताओं को मनाया। जैसे ही बिल पास होने की घोषणा हुयी अपनी तो मारे खुशी के जमीं पर पाँव नही पड रहे थी । बेशक अभी रोटी तवे पर है पता नही कहीं लोक सभा मे पकते पकते जल गयी तो क्या होगा? मगर अपने हौसले बुलन्दी पर हैं—- बार बार अपनी एक गज़ल का शेर मन मे घूम रहा था–

जमीँ पर पाँव रखती हूँ ,नज़र पर आसमा उपर

नही रोके रुकूँगी अब कि ठोकर पर जमाना है

कहाँ अबला रही औरत कहाँ बेबस ही लगती है

पहुँची है वो संसद तक सभी को ये दिखाना है

रात को खूब लज़ीज़ खाना बनाया और पति को खिलाया। आखिर मुर्गा हलाल करने से पहले पेट भर खिलाना तो चाहिये ही। बस फिर क्या सो गये। तो क्या देखते हैं कि जो टिकेट हमारे पति को मिली थी वो कट कर हमे मिल गयी। पहले तो घर मे ही विरोधी दल खडा हो गया। मायके वाले मेरे साथ और ससुराल वाले इनके साथ मगर जीत तो अपनी होनी ही थी। पार्टी को इस बिल को भुनाने का अवसर तो नही खो सकती थी। पतिदेव सिर पीट रहे थे कि क्यों उन्होंने इस बिल के हक मे वोट डाला। मगर अब बात हाथ से निकल चुकी थी। खैर मानमनौवत से विरोधियों को शान्त किया। टिकेट तो मुझे मिलना ही था मिल गया। अब एलेक्शन कम्पेन मे देख रही हूँ बेचारे पति घर मे इलेक्शन आफिस सम्भाल रहे हैं और मै बाहर गलियों मे घूम रही हूँ। जैसे तैसे इलेशन हो गया और मै जीत गयी। क्या देखती हूँ कि लोगों की भीड मुझे हार डालने के लिये उतावली हो रही है। इनके दोस्त तो और भी उतावले बडी मुश्किल से मुझे हार डालने का उन्हे अवसर मिला था तो कैसे हाथ से जाने देते? जिन्हों ने नही भी वोट डाला वो भी मेरे मुँह मे काजू की कतली डालना चाह रहे थे और मेरी नजरें इन्हें ढूँढ रही थी— दूर गेट के पास ये भीड मे उलझ्गे हुये नज़र आये— शायद दोस्तों ने ही शरारत से वहाँ उलझा रखा था इन्हें भीड मे से निकलने ही नही दिया और जब सभी हार डाल कर चले गये तो बेचारे पतिदेव हार ले कर आये। सारे फूल भीड मे झड चुके थे, हमने अवसर की नज़ाकत को समझ कर सभी हार अपने गले से उतार कर इनके गले मे डाल दिये — और मुस्कुरा कर इनकी तरफ देखा बेचारे मेरे हार डालना ही भूल गये। चलो अच्छा हुया एक बार का डाला हार आज तक गले से नही उतर है।आधी रात तक जश्न चलता रहा।

अगले दिन से घर का इतिहास,भुगोल,गणित सब बदल चुका था। आज इनके दफ्तर मे मेरा राज था । इन्हें मैने रसोई का दरवाजा दिखा दिया था। आने जाने वालों के लिये चाय-नाश्ता,खाना जैसे मै बना कर देती थी अब इनके जिम्मे हो गया। फिर देखती हूँ । रात को जैसे ही फारिग हुयी पतिदेव भोजन की थाली ले कर खडे हैं। मैने थाली के लिये हाथ बढाया ही था कि जोर जोर से मेरा हाथ हिला— ये क्या— ये सपना था?— मेरे पति जोर से मेरा हाथ पकड कर हिला रहे थी * आज क्या सोती रहोगी? सुबह के 7 बज गये? नाश्ता पानी मिलेगा कि नही? वाह रे किस्मत! क्या बदला? एक दिन सपना भी नही लेने दिया। खैर अब भी आशा की किरण बची है–टिकेट तो हम ही लेंगे। बस दुख इस बात का है कि तब आप लोगों से दूर जाना पडेगा । या फिर राज निती मे रह कर अमर सिन्ह की तरह कुछ लिख पाऊँ। मगर एक बात की आप सब से उमीद करती हूँ मेरे ईलेक्शन कम्पेन मे बढ चढ कर हिस्सा लें। धन्यवाद {अग्रिम}। जय नारी जय भारत ।

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 505 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
■ जागो या फिर भागो...!!
■ जागो या फिर भागो...!!
*Author प्रणय प्रभात*
इजहार ए मोहब्बत
इजहार ए मोहब्बत
साहित्य गौरव
तुम लौट आओ ना
तुम लौट आओ ना
Anju ( Ojhal )
सिलसिला
सिलसिला
Ramswaroop Dinkar
झूठी शान
झूठी शान
Dr. Pradeep Kumar Sharma
संसार में
संसार में
Brijpal Singh
दिल पे पत्थर
दिल पे पत्थर
shabina. Naaz
अंतिम एहसास
अंतिम एहसास
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
दुनिया को ऐंसी कलम चाहिए
दुनिया को ऐंसी कलम चाहिए
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
"माटी से मित्रता"
Dr. Kishan tandon kranti
साहित्य क्षेत्रे तेल मालिश का चलन / MUSAFIR BAITHA
साहित्य क्षेत्रे तेल मालिश का चलन / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
सीख लिया मैनै
सीख लिया मैनै
Seema gupta,Alwar
ख्वाब आँखों में सजा कर,
ख्वाब आँखों में सजा कर,
लक्ष्मी सिंह
ग़ज़ल
ग़ज़ल
प्रीतम श्रावस्तवी
मैं खंडहर हो गया पर तुम ना मेरी याद से निकले
मैं खंडहर हो गया पर तुम ना मेरी याद से निकले
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
*राम-नाम को भज प्यारे यह, जग से पार लगाएगा (हिंदी गजल)*
*राम-नाम को भज प्यारे यह, जग से पार लगाएगा (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
शक्ति शील सौंदर्य से, मन हरते श्री राम।
शक्ति शील सौंदर्य से, मन हरते श्री राम।
आर.एस. 'प्रीतम'
🌷 सावन तभी सुहावन लागे 🌷
🌷 सावन तभी सुहावन लागे 🌷
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
क्या पता...... ?
क्या पता...... ?
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
लोगों की फितरत का क्या कहें जनाब यहां तो,
लोगों की फितरत का क्या कहें जनाब यहां तो,
Yogendra Chaturwedi
शिवकुमार बिलगरामी के बेहतरीन शे'र
शिवकुमार बिलगरामी के बेहतरीन शे'र
Shivkumar Bilagrami
थपकियाँ दे मुझे जागती वह रही ।
थपकियाँ दे मुझे जागती वह रही ।
Arvind trivedi
ग़ज़ल:- रोशनी देता है सूरज को शरारा करके...
ग़ज़ल:- रोशनी देता है सूरज को शरारा करके...
अरविन्द राजपूत 'कल्प'
सच कहा था किसी ने की आँखें बहुत बड़ी छलिया होती हैं,
सच कहा था किसी ने की आँखें बहुत बड़ी छलिया होती हैं,
नव लेखिका
2739. *पूर्णिका*
2739. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
बिधवा के पियार!
बिधवा के पियार!
Acharya Rama Nand Mandal
ज़िंदगी तेरे सवालों के
ज़िंदगी तेरे सवालों के
Dr fauzia Naseem shad
रंग भरी पिचकारियाँ,
रंग भरी पिचकारियाँ,
sushil sarna
बात हमको है बतानी तो ध्यान हो !
बात हमको है बतानी तो ध्यान हो !
DrLakshman Jha Parimal
****शिरोमणि****
****शिरोमणि****
प्रेमदास वसु सुरेखा
Loading...