Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Mar 2017 · 7 min read

वो एक रात 4

#वो एक रात 4

उसके चलने से जंगल के सूखे पत्तों पर चड़-चड़ की आवाज उत्पन्न हो रही थी। उसका व्यक्तित्व अपने आप में अद्भुत था। सिर पर सन से सफेद बालों का एक गुच्छा था जिसे जटा का रूप दे दिया गया था। उस पर रुद्राक्ष की एक माला चारों ओर लिपटी थी। दाढ़ी भी काफी लंबी थी और घनी भी थी पूरा चेहरा जो उन्होंने घेर रखा था। आँखों में एक अलग ही रक्त वर्ण घेरा था मानों खून उतर आया हो। माथा सपाट, कठोर और आभा युक्त था। रुद्राक्ष की विभिन्न मालाओं से सुसज्जित और पूरे शरीर पर भस्म रमी हुई थी। मृगछाल ने जाँघों का अनावरण कर रखा था और सबसे विशिष्ट उसकी वो लाठी थी जो आगे के सिरे से किसी भयंकर नाग के फैले हुए फन के समान चौड़ी थी। चेहरे पर क्रोध और मन में अंतर्द्वन्द्व चल रहा था उस व्यक्ति के।
“मुझे मठ से निकालकर वो श्रद्धानंद अट्टहास कर रहा होगा। उंह, बटुकनाथ की सिद्धियों से अभी पाला नहीं पडा़ उसका। मन में कुत्सित भावनाएँ रखता है दुष्ट, मठ की साध्वियों के साथ नैन मटक्का करके मुझ पर घोर अपराध का आरोप लगाकर क्या बच पाएगा वो। मुझे बस उस श्रांतक मणी तक पहुँचना होगा। अपना लक्ष्य निर्धारित कर चुका है बटुकनाथ। श्रद्धानंद, तुझे देख लूँगा मैं।”
मन की आवाजों ने यथार्थ रूप ले लिया था। होठों पर मानों अंगार बरस रहे थे बटुकनाथ के।
“लेकिन बालकनाथ जी का क्या होगा? ” चिंता की लकीरें स्पष्ट माथे पर उत्कीर्ण हो गई थी।
“दुष्ट ने चाल चल दी तो, बालकनाथ जी को कहीं वो……. नहीं… नहीं, मुझे शीघ्र ही अपने कार्य को करना होगा। बालकनाथ जी को कुछ नहीं होगा। वे एक सिद्ध पुरुष हैं। उनकी योगिक शक्तियों के सामने नहीं ठहर पाएगा वह श्रद्धानंद। लेकिन मैं फिर भी उस नीच की ओर से निश्चिंत नहीं हो सकता। इस विदेशी श्रद्धानंद को मठ से दूर करना ही होगा। अन्यथा अपनी दूषित विचारधारा से यह मठ के वातावरण को भी दूषित कर देगा। पता नहीं बालकनाथ जी और अन्य आचार्य इस दुष्ट की बातों में कैसे आ गए!”
लेकिन मेरा अपमान…. घोर अपमान हुआ है….. ” आँखें तरेर ली उस साधु ने।
“क्या जानता है वो मेरे बारे में….. जीवन के 22 वर्ष अघोरी बनकर भयंकर श्मशानों में गुजारे हैँ मैंने…. अनेक सिद्धियों को हासिल कर चुका हूँ मैं। वो तो मठ के नियमों में बँध गया था मैं वरना उस आततायी के प्राणों को निकाल लेता मैं। परंतु मुझे इन क्षणिक बाधाओं से हताश नहीं होना चाहिए….. मुझे विदित हो चुका है….. इस घोर जंगल में घुसना होगा मुझे। इस जंगल के पार ही वो त्रिजटा पर्वत है। उसी की चोटी पर ही कहीं किसी एक स्थान पर वो अद्भुत श्रांतक मणी उपस्थित है। आह काफी वर्षों की मेहनत अब रंग लाने वाली है। परंतु इन मार्गों की कठिनाइयों को वश में करने के लिए मुझे कुछ शिष्यों की आवश्यकता अनुभव हो रही है। और अगर इन भयंकर जंगलों के बारे में जानकारी रखने वाले कोई यहाँ के निवासी मिल जाएँ तो सोने पर सुहागा हो जाए।”
अपने विचारों में खोया हुआ वो अघोरी बटुकनाथ अपने गंतव्य की ओर अग्रसर था।
पता नहीं क्या चाहता था वह? श्रांतक मणी! कैसी मणी थी आखिर जिसके लिए वो अपने अपमान को भूलकर उसकी खोज में उत्तमनगर के उन विशाल और रहस्यमय जंगलों में प्रवेश करने के लिए आतुर था।
और कौन था ये अघोरी? किस मठ की बात कर रहा था वह! श्रद्धानंद की बटुकनाथ से क्या शत्रुता थी आखिर!
*************************************************
रवि ने आज की इस घटना में और कल रात की घटना में एक विशेष समानता देखी। वहाँ पर लड़की की लाश गायब हो गई थी और इस आज की घटना में मछलियाँ गायब हो गई थी। और नीलिमा के अनुसार इस सारी घटना में मछलियाँ थी ही नहीं। फिर वो भयंकर बिल्ली मछली कैसे खा रही थी! और किचन में जो बिखरी हुई मछलियाँ रवि ने देखी थी; वे कहाँ से आई थी और कहाँ गायब हो गई थी? आखिर चक्कर क्या था ये! क्या हो रहा था ये रवि के साथ!
रवि इन विचारों में ही डूबा हुआ था। लेकिन वह कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पा रहा था। नीलिमा ने दोबारा चाय बनाई और रवि को दे दी। नीलिमा को अकेले किचन में डर लगा उस समय। उसने रवि को पास खडा़ कर चाय बनाई और दोनों ड्राइंग रूम में आ गए।
“रवि अब आपकी तबियत कैसी है?” नीलिमा ने रवि को परेशान देखकर पूछा।
वह रवि को और चिंतित नहीं देख सकती थी। जब से वे उत्तमनगर शिफ्ट हुए थे तब से अब तक रवि ने अपने ओफिस से छुट्टी ही नहीं ली थी। आगरा से उन्हें उत्तमनगर शिफ्ट हुए छ: महीने से भी अधिक समय हो चुका था। और उन दिनों में उन्हें एक दूसरे के पास बैठने का समय ही नहीं मिला था। वो तो कल रात…….. कल रात….. अरे रवि ने तो अभी तक बताया ही नहीं कल रात क्या हुआ था.. नीलिमा ने सोचा…. यह समय सही है इस बात को पूछने का।
लेकिन उधर रवि इन दोनों घटनाओं से परेशान था। उसे इनका कोई सिरा ही नहीं मिल रहा था। लड़की की लाश आखिर गई तो गई कहाँ।
“नीलू तुम ठीक हो न”
“हाँ रवि मैं अब सही हूँ ।”
तुम्हारी तबियत कैसी है अब।” कैसा फील कर रहे हो? ”
रवि को डर था कि नीलू कल रात के बारे में न पूछ ले इसलिए उसने थोड़ा चक्कर का बहाना बनाया और आराम करने के लिए कहा।
“नीलू अब डर कैसा बिल्ली ही तो थी, चली गई।”
“लेकिन रवि वो खुरचने और बड़बड़ाने जैसी आवाजें…… वो क्या था! ” नीलू ने डरते हुए कहा।
“ओह नीलू, वो बिल्ली दिवार खुरच रही होगी अपने पंजों से, और कुछ नहीं, टैंशन न लो।” कहकर रवि ने नीलिमा को गले से लगा लिया।
फिर रवि बैडरूम में आकर लेट गया। नीलू ने सोचा, रवि को उन बातों को याद दिलाकर क्यूँ परेशान करना, फिर कभी पूछ लूँगी, इतना सोचकर उसने रवि को चादर ओढा़ई। दोनों एक दूसरे की तरफ मुसकुराए और फिर नीलिमा बाहर चली आई।
धीरे-धीरे रात काला कफन ओढ़ती जा रही थी। हवा शांत थी। रात की नीरवता में झींगुर की आवाजें गूँज रही थीं। लेकिन कोई एक साया छिपकली की तरह नीलिमा और रवि के बैडरूम वाली सड़क की तरफ की बाहर की दिवार पर चिपका था। धीरे-धीरे वह ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा था। कमाल की बात थी। चिकनी दीवार पर वह कैसे इस तरह चढ़ रहा था। और थोड़ी देर में वह खिड़की के पास पहुँच गया। वह खिड़की को भी पार कर गया और थोड़ी देर बाद वह दिखना बंद हो गया।
रवि की अचानक आँखें खुल गई। उसे ऐसा लगा था जैसे बर्फ से भी ठंडे हाथ ने उसकी पैर की उँगलियों को पकडा़ हुआ था। उसे अभी भी उँगलियों में सनसनाहट महसूस हो रही थी। उसे प्यास लग आई। उसने नीलिमा को देखा। वह सो रही थी। बैड के सिरहाने रखी घडी़ में झाँका तो 12 से ऊपर का समय हो चुका था। उसने बोतल उठाई उसमें पानी नहीं था। पानी के लिए किचन में जाना था। क्योंकि फ्रीज वहीं पर था। उसने एक बार और नीलिमा को देखा और किचन की और कदम बढा़ दिए। रवि ने जैसे ही कुछ कदम बढा़ए उसे…. मियाऊँ……… की आवाज सुनाई दी। और कोई वक्त होता तो शायद रवि इग्नोर कर सकता था। परंतु पिछली घटनाओं को याद करके रवि परेशान सा हो गया। उसने कान लगा दिए…. आवाज कहाँ से आई थी।…. मियाऊँ…… मियाऊँ….. आवाजें बाथरूम से आईं थी। बाथरूम में………. बिल्ली
…… कैसे पहुँची…. जबकि बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद था और उसमें कोई ऐसा रोशनदान भी नहीं था जिसके जरिए बिल्ली बाथरूम में जा सकती थी। कोतुक में भरा रवि बाथरूम के पास पहुँचा। हैरानगी की बात थी बाथरूम से बिल्ली की आवाजें आ रही थीं। उसने दरवाजा खोला। बाथरूम में अँधेरा था। अचानक रवि सिहर गया। उसने एक कोने में एक जोड़ी चमकती आँखें देखी। हो न हो ये बिल्ली की ही आँखें थीं। रवि ने काँपते हाथों से बाथरूम का बल्ब जलाया। विस्मय से उसकी आँखें फटी रह गई। बाथरूम में कोई नहीं था। और न ही उस कोने में जहाँ बिल्ली की आँखें चमक रही थी। अब सामने रवि ने जो मंजर देखा उसे देखकर तो वो उछल ही पडा़। जिस शर्ट को रवि ने एक्सीडेंट के समय पहन रखा था वह………. खून से सनी हुई बाथरुम में रखी थी। रवि की धड़कनें तेज हो गई। उसे अपने दिल की धड़कनें साफ सुनाई दे रही थी। अचानक बाहर उसे कुछ आवाज सुनाई दी। वह बाहर भागा। रवि का दिमाग सुन्न हो गया था। आवाजें बाहर से आई थी। उसकी कार अभी भी बाहर आँगन में खडी़ थी। और आवाजें वहीं से आई थी। रवि ने थरथराते हुए बाहर का दरवाजा खोला। रात का सन्नाटा चरम पर था। चारों ओर खामोशी छाई हुई थी। दूर से कुत्तों के भौंकने की हल्की आवाजें कभी-कभी आ जाती थी। अचानक रवि को टप-टप-टप-टप की आवाज सुनाई दी। शायद कहीं कुछ टपक रहा था। कार के पीछे टपकने की आवाजें आ रही थी। आँगन में अँधेरा था। रवि ने बल्ब खोल दिया। टप-टप की आवाजें निरंतर आ रही थीं। रवि घूमकर कार के पीछे गया। पीछे का भयंकर मंजर देखकर रवि ने चीखना चाहा लेकिन उसकी आवाज गले में दब गई। अधखुली डिग्गी से एक हाथ बाहर निकला हुआ था और उससे खून टपक रहा था। रवि की साँसें बहुत तेज चल रही थी। पता नहीं उसके साथ ये क्या हो रहा था। उसके दिमाग ने थोड़ा सा काम किया उसने डिग्गी का दरवाजा पूरा खोल दिया। अबकी बार तो रवि बेहोश होते-होते बचा। डिग्गी में लड़की की लाश पडी़ थी। वह बदहवास हालत में नीलू-नीलू चिल्लाते हुए अंदर की ओर दौड़ पडा़……………….. ।
सोनू हंस

Language: Hindi
358 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बरस रहे है हम ख्वाबो की बरसात मे
बरस रहे है हम ख्वाबो की बरसात मे
देवराज यादव
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
आर.एस. 'प्रीतम'
इश्क का भी आज़ार होता है।
इश्क का भी आज़ार होता है।
सत्य कुमार प्रेमी
भारत है वो फूल (कविता)
भारत है वो फूल (कविता)
Baal Kavi Aditya Kumar
कुछ व्यंग्य पर बिल्कुल सच
कुछ व्यंग्य पर बिल्कुल सच
Ram Krishan Rastogi
कुपमंडुक
कुपमंडुक
Rajeev Dutta
"दीप जले"
Shashi kala vyas
दुनिया तेज़ चली या मुझमे ही कम रफ़्तार थी,
दुनिया तेज़ चली या मुझमे ही कम रफ़्तार थी,
गुप्तरत्न
शुरू करते हैं फिर से मोहब्बत,
शुरू करते हैं फिर से मोहब्बत,
Jitendra Chhonkar
तुम्हारे प्रश्नों के कई
तुम्हारे प्रश्नों के कई
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
बीमारी से सब बचें, हों सब लोग निरोग (कुंडलिया )
बीमारी से सब बचें, हों सब लोग निरोग (कुंडलिया )
Ravi Prakash
मालूम है मुझे वो मिलेगा नहीं,
मालूम है मुझे वो मिलेगा नहीं,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
Us jamane se iss jamane tak ka safar ham taye karte rhe
Us jamane se iss jamane tak ka safar ham taye karte rhe
Sakshi Tripathi
🙅याद रहे🙅
🙅याद रहे🙅
*Author प्रणय प्रभात*
दिल के सभी
दिल के सभी
Dr fauzia Naseem shad
छल.....
छल.....
sushil sarna
Bieng a father,
Bieng a father,
Satish Srijan
रात का आलम था और ख़ामोशियों की गूंज थी
रात का आलम था और ख़ामोशियों की गूंज थी
N.ksahu0007@writer
23/151.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/151.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दादी की कहानी (कविता)
दादी की कहानी (कविता)
दुष्यन्त 'बाबा'
"सुपारी"
Dr. Kishan tandon kranti
हालातों का असर
हालातों का असर
Shyam Sundar Subramanian
जिंदगी एक भंवर है
जिंदगी एक भंवर है
Harminder Kaur
Two Different Genders, Two Different Bodies And A Single Soul
Two Different Genders, Two Different Bodies And A Single Soul
Manisha Manjari
अज़ाँ दिलों की मसाजिद में हो रही है 'अनीस'
अज़ाँ दिलों की मसाजिद में हो रही है 'अनीस'
Anis Shah
कोरे कागज पर...
कोरे कागज पर...
डॉ.सीमा अग्रवाल
#विषय:- पुरूषोत्तम राम
#विषय:- पुरूषोत्तम राम
Pratibha Pandey
क्यों इस तरहां अब हमें देखते हो
क्यों इस तरहां अब हमें देखते हो
gurudeenverma198
💐💐उनसे अलग कोई मर्ज़ी नहीं है💐💐
💐💐उनसे अलग कोई मर्ज़ी नहीं है💐💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
नहीं कभी होते अकेले साथ चलती है कायनात
नहीं कभी होते अकेले साथ चलती है कायनात
Santosh Khanna (world record holder)
Loading...