Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Feb 2017 · 7 min read

वैलेंटाइन डे युवाओं का एक दिवालियापन

प्रेम शब्दों का मोहताज़ नही होता प्रेमी की एक नज़र उसकी एक मुस्कुराहट सब बयां कर देती है, प्रेमी के हृदय को तृप्त करने वाला प्रेम ईश्वर का ही रूप है| एक शेर मुझे याद आता है की….
“बात आँखों की सुनो दिल में उतर जाती है
जुबां का क्या है ये कभी भी मुकर जाती है ||”
इस शेर के बाद आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करता हूँ कहते है किसी देश में कोई राजा हुआ जिसने अपनी सेना को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए अपने सैनिकों के विवाह करने पर रोक लगा दी थी जिसके कारन समाज में व्यभिचार फैलने लगा सैनिक अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को अनैतिक रूप से पूरा करने लगे जिसका समाज पर बुरा प्रभाव पढने लगा ऐसे में उस राज्य में एक व्यक्ति हुआ अब वो संत था या क्या था इसका इतिहास कहीं नही मिला लेकिन हाँ उसने उस समय प्रताड़ित किये गये इन सैनिकों की सहायता की और समाज को नैतिक पतन से बचाने के लिए सैनिकों को चोरी छिपे विवाह करने के लिए उत्साहित किया. उसका परिणाम ये हुआ की राजा नाराज़ हो गया और उसने उस व्यक्ति की हत्या करवा दी तब से ही पश्चिम के लोग उस मृतात्मा को याद करने के लिए इस दिवस को वलेंतिन डे के रूप में मनाते है . जिसका हमारी तरफ से कोई विरोध नही है लेकिन इस दिवस के नाम पर बाज़ारों में पैसे की जो लूट होती है या कहें भारतीय संस्कारों का पतन होता है, अश्लीलता और फूहड़ता के जो दृश्य उत्पन्न होते है उनसे हमारा विरोध है |
अब सोचने वाली बात ये है की भारतीय संस्कृति में ये प्रदुषण आया कैसे हम भारतीय इतने मुर्ख कैसे हो गये की किसी और देश में घटने वाली घटना से सम्बंधित तथाकथित पर्व हमने अपनी संस्कृति में घुस आने दिया |
एक ऐसा देश जो राधा और कृष्ण के निर्विकार निश्चल प्रेम का साक्षी रहा हो जिसने समूची सृष्टि को प्रेम के वास्तविक रूप से अवगत कराया हो वहां के युवाओं द्वारा ये वैलेंटाइन डे मनाकर के अपनी संस्कृति का ह्रास करना ,फूहड़ता और अश्लीलता का प्रदर्शन करना कहां तक जायज़ है. हमारी संस्कृति में पहले से ही बसंत पंचमी, होली जैसे सार्थक, उद्देश्यपरक त्यौहार है. जिनमे पूरा समाज मिलजुल कर खुशियाँ मनाता है.जब इस प्रकार के सामूहिक उल्लास के पर्व है तो हमारे युवाओं को उधार के उद्देश्यहीन और अश्लीलता से भरे ये पर्व है न जाने क्यों आकर्षित करते है. लार्ड मैकाले की बड़ी इच्छा थी की वो शरीर से भारतीय और मानसिकता से अंग्रेजी सोच वाले लोगों को तैयार करे उसके इस स्वप्न को आज हमारे युवा साकार करते नजर आते है |
सात दिवस पहले से ही बाहों में बाहें डाले फूहड़, बेतुके कपड़े पहने आपको ऐसे बरसाती मेंडक सडकों पर घुमते हुए आसनी से मिल सकते है. जो इन सात दिनों तक एक दूसरे के लिए पागल रहते है और सच मानिए ऐसे दिखावा करने वालो का प्रेम अगले सात दिनों तक भी नही चलता .क्यों ?
क्योंकी ये प्रेम के सच्चे स्वरूप को नही जानते एक दूसरे से लिपटना चिपटना प्रेम नही है ये तो केवल हवस और सेक्स है जिसे हमारे युवा प्रेम समझ बैठते है और एक दुसरे के प्रति आकर्षण खत्म हो जाने के बाद ये प्रेम भी तिरोहित हो जाता है बचता है तो तनाव और मानसिक अशांति | प्रेम ईश्वर के होने का एहसास है प्रेम वो भावना है जो हमारे अंदर ईश्वर की उपस्थिति दर्शाती है प्रेम एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी भी व्यक्ति को अपना बना सकते है सच्चे और निर्विकार प्रेम के आगे तो स्वयं भगवान् भी हाथ बांधे अपने प्रेमी के सामने खडे नज़र आते है. आज जिस प्रकार के प्रेम की बात की जाती है और वो अनेको विकृतियों से भरा हुआ है. निश्चित रूप से वो प्रेम की परिभाषा भारत की तो नही हो सकती हम भारतीय इस उधार की संस्कृति को अपनाकर अपने देश की छवि को धूमिल करने में लगे है |
भारतीय प्रेम किसी एक दिवस का मोहताज़ नही है भारयीय संस्कृति में हर दिवस ही प्रेम दिवस है . हम आज भी मानसिक रूप से अंग्रेजों के गुलाम है. अफ़सोस की आज़ादी के पहले इतने काले अँगरेज़ नहीं थे जितने आज़ादी के बाद बन गए हैं | क्या आप अपने आपको वैज्ञानिक बुद्धि का कहते हो क्या कभी जानने की कोशिश की के जो कर रहे हैं इसके पीछे का सच क्या है वास्तव में सच ये है की इस प्रकार से भारतीय युवाओं को वैलेंटाइन डे जैसे दिनों के प्रति आकर्षित करके भारत के रूपये पैसे को खीचना है इन साथ दिनों में करोड़ो रूपये विदेशी तिजोरियों में चले जाते है अब एक प्रश्न है भारतीय युवाओं से क्या वो जिस व्यक्ति को प्रेम करते है वो इतना लालची है की इन दिनों जब तक आप उसे कोई उपहार नही देंगे तब तक वो आपके प्रेम को स्वीकार नही करेगा | क्या इन दिनों में विशेष कोई गृह दशा होती है की इन दिनों ही अपने साथी को चोकलेट खिलाओ, फूल दो, गुड्डा गुडिया दो, तो उसके प्रभाव स्वरुप वो आपके प्रेम को स्वीकार कर लेगा | निश्चित रूप से आप कहेंगे ऐसा नही है फिर ये निराधार वेलेंटाइन डे का दिवालियापन क्यों ?
एक और पक्ष भी है मेरे पास कई तथाकथित बुद्धिजीवी भी इस की प्रशंशा के गीत गाते नज़र आते है उनका कहना ये होता है की इस दिवस को आप इतना गलत तरीके से क्यों लेते हो इस दिवस को आप अपने परिवार अपने माता पिता ,बहन.भाई के साथ मना सकते है तो भाई में ये पूछना चाहता हूँ की जिस घटना का और घटना से सम्बन्धित इतिहास का भारत से कोई लेना देना ही नही है उसे यहाँ मनाने की आवश्यकता ही क्या है इस सप्ताह में एक दिवस आता किस डे (kiss Day) अब मनाओ अपनी माता- बहनों के साथ कैसे सम्भव है ये अश्लीलता ?
भारत के एक महान संत ने इस संस्कृति की रक्षा हेतु इस दिवस को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में घोषित किया है जिसके पीछे उद्देश्य आज विघटित होते परिवार और हमारी संस्कृति को जो हानि हो रही है उसकी भरपाई करना है उन्होंने इस सप्ताह को मातृ-पितृ पूजन सप्ताह बनाया है .उन्होंने इस सप्ताह के प्रत्येक दिवस को एक अलग रंग देने के लिए अलग–अलग नाम दिए है .
प्रथम दिवस धारणा दिवस जिसका उद्देश्य है की व्यक्ति अपने अंदर श्रेष्ठ धारणायें उत्पन ही न करे बल्कि धारणाओं में दृडता भी लायें.
द्वितीय दिवस भावना दिवस मनुष्य का जीवन उसके अंदर उत्पन्न होने वाली भावनाओं पर आधारित होता हो जो जैसा सोचता है वैसा बनता चला जाता है तो इस दिवस पर अपनी भावनाओं,विचारों को ठीक करने का संकल्प लें.
तीसरा दिवस है सेवा दिवस ये दिवस प्रेरित करता है की हम परोपकारी बने जैसे भी हो सके मन से वचन से कर्म से या धन से लोगों की सेवा करने का संकल्प लें .
चौथा दिवस है संस्कार दिवस अर्थात हम संस्कारों को धारण करें कौन से संस्कार ,वो संस्कार जो हमारे व्यक्तित्व का विकास करें हमे हमारे धर्म और परिवार का नाम रोशन करने में मदद करे. इसकी नैतिक जिम्मेदारी माता-पिता की है क्योंकि आज बच्चों में यदि संस्कारों का अभाव है तो उसके लिए माता-पिता भी दोषी है तो ये दिवस हमे बताता है की बच्चों के लिए भी समय निकाले और बच्चे भी श्रेष्ठ संस्कारों को धारण करें.
पांचवा दिवस संकल्प दिवस इस दिवस पर आप संकल्प ले की आपके अंदर आपको जो भी दुर्गुण दिखाई देते है आप उन पर लगाम लगायेंगे वो दुर्गुण एकदम समाप्त नही भी हो पाए तो कम से कम उनको कम करने का संकल्प तो ले ही सकते है तो इस दिवस बुराइयों को छोडने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने का संकल्प ले सकते है.
छटा दिवस है सत्कार दिवस इस भागती दौडती दुनिया में हर आदमी पैसे की ओर अंधाधुंध दौड़ता नजर आता है. किसी व्यक्ति को किसी अतिथि के आने की तिथि मालुम पढ जाए तो उसके आने से पहले ही वो किसी और का अतिथि बन जाता है. हमारे देश में अतिथि को देव कहा गया गया है .हमारी परम्परा अतिथि देवो भव: की रही है. लेकिन वर्तमान समय में इस भावना का अभाव नजर आता है. कोई किसी का सत्कार नही करना चाहता हाँ स्वयं के सत्कार के लिए सब लालायित है .लेकिन जब तक आप सत्कार करेंगे नही तब तक आपका सत्कार भी नही हो सकता तो अपने इष्ट मित्रों के साथ समय व्यतीत करें अपने अंदर अतिथि देवो भव: की भावना लाये तो देखिये परिवारों और इष्ट मित्रो के बीच आप अपने आप को कितना निश्चिंन्त और प्रसन्न अनुभव करेंगे जो लोग एकाकीपन का अनुभव करते है ये दिवस उन्हें विशेष रूप से मनाना चाहिए.
सातवाँ दिवस है श्रद्धा दिवस अर्थात ये दिवस संदेश देता है की हम वैसे तो रोज ही प्रदर्शित करते है लेकिन आज के दिन विशेष रूप से अपने बड़े बुजुर्गों के प्रति सम्मान और श्रद्धा प्रदर्शित करें. क्योकि हमारे बड़े ही हमारी वो जडें हैं जिन्होंने हमे सींचकर समाज के योग्य बनाया है तो निश्चती रूप से हमे उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करनी चाहिए.
आठवाँ दिवस मातृ-पितृ पूजन दिवस ये जितने भी दिवस हम मनायेंगे इन सब का आधार है माता-पिता……..
माता-पिता है तो श्रेष्ठ धारणा है,भावना है ,सेवा है और संस्कार है
धरती पर माता पिता ईश्वर का प्रतिपल अवतार है,
माता-पिता है तो जीवन में श्रेष्ठ संकल्प है, सत्कार है श्रद्धा और विश्वास है.
माता-पिता की कृपा ही हमारे जीवन का आधार है.
इसलिए इस दिवस माता-पिता की पूजा कर स्वयं को कृतार्थ करें. माता-पिता का सम्मान करें उनके साथ समय व्यतीत करें ये ही इस दिवस का संदेश है |
तो चलिए क्यों न आज से हम अपने जीवन में श्रेष्ठ आदर्शों को अपनाते हुए अपनी संस्कृति की रक्षा करने हेतु इस वैलेंटाइन डे को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप मे आत्मसात करें |

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 786 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
इतना मत इठलाया कर इस जवानी पर
इतना मत इठलाया कर इस जवानी पर
Keshav kishor Kumar
संदेशा
संदेशा
manisha
बेटियां
बेटियां
Ram Krishan Rastogi
"ख्वाब"
Dr. Kishan tandon kranti
■ एक ही उपाय ..
■ एक ही उपाय ..
*Author प्रणय प्रभात*
माँ
माँ
नन्दलाल सुथार "राही"
मुक्तक - जिन्दगी
मुक्तक - जिन्दगी
sushil sarna
Sharminda kyu hai mujhse tu aye jindagi,
Sharminda kyu hai mujhse tu aye jindagi,
Sakshi Tripathi
थम जाने दे तूफान जिंदगी के
थम जाने दे तूफान जिंदगी के
कवि दीपक बवेजा
*आशाओं के दीप*
*आशाओं के दीप*
Harminder Kaur
प्राकृतिक के प्रति अपने कर्तव्य को,
प्राकृतिक के प्रति अपने कर्तव्य को,
goutam shaw
वो ऊनी मफलर
वो ऊनी मफलर
Atul "Krishn"
अब क्या बताएँ छूटे हैं कितने कहाँ पर हम ग़ायब हुए हैं खुद ही
अब क्या बताएँ छूटे हैं कितने कहाँ पर हम ग़ायब हुए हैं खुद ही
Neelam Sharma
लागे न जियरा अब मोरा इस गाँव में।
लागे न जियरा अब मोरा इस गाँव में।
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
हरमन प्यारा : सतगुरु अर्जुन देव
हरमन प्यारा : सतगुरु अर्जुन देव
Satish Srijan
Line.....!
Line.....!
Vicky Purohit
जो लोग धन को ही जीवन का उद्देश्य समझ बैठे है उनके जीवन का भो
जो लोग धन को ही जीवन का उद्देश्य समझ बैठे है उनके जीवन का भो
Rj Anand Prajapati
पावस की रात
पावस की रात
लक्ष्मी सिंह
💐प्रेम कौतुक-322💐
💐प्रेम कौतुक-322💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
*पद के पीछे लोग 【कुंडलिया】*
*पद के पीछे लोग 【कुंडलिया】*
Ravi Prakash
गुरु महाराज के श्री चरणों में, कोटि कोटि प्रणाम है
गुरु महाराज के श्री चरणों में, कोटि कोटि प्रणाम है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
धनवान -: माँ और मिट्टी
धनवान -: माँ और मिट्टी
Surya Barman
*****वो इक पल*****
*****वो इक पल*****
Kavita Chouhan
बदल डाला मुझको
बदल डाला मुझको
Dr fauzia Naseem shad
" रहना तुम्हारे सँग "
DrLakshman Jha Parimal
भाई बहिन के त्यौहार का प्रतीक है भाईदूज
भाई बहिन के त्यौहार का प्रतीक है भाईदूज
gurudeenverma198
खुदकुशी नहीं, इंकलाब करो
खुदकुशी नहीं, इंकलाब करो
Shekhar Chandra Mitra
यही जीवन है ।
यही जीवन है ।
Rohit yadav
हम कितने आँसू पीते हैं।
हम कितने आँसू पीते हैं।
Anil Mishra Prahari
बेटी को पंख के साथ डंक भी दो
बेटी को पंख के साथ डंक भी दो
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
Loading...