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3 Jul 2017 · 1 min read

विवश किसान

चिता जला डाला मिट्टी में मिला दिया अरमान को।
मरने पर विवश कर डाला है क्यों आज किसान को।।

कर्जा पर कर्जा पर कर्जा, बोल नहीं मुँह खोल नहीं।
वरना खोल खुले भेजा का, नाहक हक की बोल नहीं।।
भीषण दानव अट्टहास कर, अहोभाग्य को छीन रहा।
बेचारा असहाय सदी से, हरदम ही गमगीन रहा।।
माई बाप नहीं जो रक्षा, को बोले भगवान को।।
मरने पर विवश कर डाला है क्यों आज किसान को।।

बुद्धू लोग बनाते अक्सर, अवसर रहे चुनाव का।
ये कर देंगे वो कर देंगे, जाला बुने बुनाव का।।
जुमले सारे बरसाती ही, मेढ़क जैसे उछल रहे।
बिन पेंदी के लोटे जैसे, पलपल पाला बदल रहे।।
क्रूर भाव बल पाकर पाया, क्या बोलो बलवान को।
मरने पर विवश कर डाला है क्यों आज किसान को।।

नीच बोलकर वोट मांगकर, आसमान से बोल रहे।
अट्टहास पागलपन का है, देखो जमकर डोल रहे।।
ताकतवर को ताकत देकर, दीनहीन को सता रहे।
धरापुत्र को गोली मारे, ठेंगा उनको दिखा रहे।।
जिसको अपना कहा पराया, पाया उस इंसान को।
मरने पर विवश कर डाला है क्यों आज किसान को।।

मार मार कर महंगाई ने, घायल उसको कर डाला।
सरकारों के पागलपन ने, पागल उसको कर डाला।।
हल वाले का हाल बिगाड़ा, खेती को बदहाल किया।
लागत से कम दाम दिलाकर, कृषकों को कंगाल किया।
देशभक्त खेतीहर का ही, क्या बोले अपमान को।
मरने पर विवश कर डाला है क्यों आज किसान को।।

Language: Hindi
Tag: गीत
526 Views
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