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30 May 2017 · 1 min read

विडम्बना

ममता मरी
समता मरी
अतृप्ति जीवित ।
मानवी संवेदनाएँ
चुक गयीं
होकर व्यथित ।

घर छोड़ती
हद तोड़ती
गृह लक्ष्मी
विश्वास को ठेंगा बताती
बन रही है
कुलक्षणी ।

पाश्चात्य दामन
में रमा मन
अविवेकी नयी पीढ़ी
सभ्यता के नाम पर
खेलती है खेल
साँप सीढी‌ ।

Language: Hindi
267 Views
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