Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Feb 2017 · 2 min read

विजेता

आपने पढ़ा विजेता उपन्यास का पहला पेज। अब पढ़ें दूसरा पृष्ठ।
उसे देखते ही शमशेर ने उससे प्यार से कहा,”चल गोलू लाडो।”
शमशेर ने अपनी भाभी के तीखे अंदाज को अनसुना कर दिया था।अपने चाचा के मुँह से प्यार के शब्द सुनकर गोलू की भी हिम्मत बंधी।उसने अपनी माँ से कहा,”माँ! गुस्सा ना करै। चाचा-चाची ब्होत अच्छे सैं।चाची तेरै खात्तर एक साड़ी ल्याई सै, बाबा खात्तर धोती-कुरता और मेरी खात्तर मालपड़े—–।”
अपनी बच्ची को बीच में ही टोकते हुए भाभी जी बोली,”गोलू की बच्ची!चुप हो ज्या।” फिर उसने शमशेर को संबोधित करते हुए कहा,”आड़े तैं लिकड़ज्या,ना तै इसा आलम(इल्जाम) लगा दूँगी के किते मुँह दिखावण जोग्गा भी नहीं रहवैगा।”
अपनी भाभी की यह बात सुनकर शमशेर सहम गया।उसे अपनी भाभी से इस प्रकार के गैर जिम्मेदाराना बर्ताव की अपेक्षा नहीं थी। पिछले कुछ दिनों से गोलू उनके घर पर आने लगी थी। इससे शमशेर तथा बाला को यह लगने लगा था कि बड़े भाई-भाभी को अब उनसे शिकायत नहीं है।उन्हे लगा कि अलग होने के कारण पैदा हुई कटुता अब मिट जाएगी और इसीलिए वे पति-पत्नी मकर-सक्रांति के पावन पर्व पर अपने से बड़ों का हर गिला दूर कर देना चाहते थे परन्तु शमशेर को यहाँ आकर इस सच्चाई का पता चला कि गोलू तो उनके घर अपने माता-पिता से छुपकर आती थी।
शमशेर ने बड़ी नरमी के साथ अपनी भाभी से कहा,”भाभी! तूं बड्डी-स्याणी होकै इसी घटिया बात करती शोभा ना देती। मैं थाहरे तैं छोटा सूं,न्यू बेशर्मी दिखाके नीच्चे नै मत गिरै भाभी।”
अपने देवर की यह बात सुनकर भाभी जी ने तैश में आकर कहना शुरू किया,”नीच तो लिकड़्या तूं। नौकरी लागते के साथ आँख बदलग्या तूं। तेरे माँ-बाप तन्नै छोटे- से नै छोड़कै चल बसे थे पर तन्नै अपणे उस भाई का साथ छोड़ दिया जिसनै तूं काबिल बणाया।” इस दौरान भाभी जी ने यह बात छुपा ली कि वह अपने इस देवर के कपड़े तक नहीं धोती थी। इस बीच गली में कुछ औरतें झुंड बनाकर उन देवर- भाभी की लड़ाई का आनंद लेने लगी थी।
शमशेर ने धीमे स्वर में कहा,”भाभी! तन्नै भी तो बाला गेल्यां कोए कसर नहीं छोड्डी। वो बिचारी भूखी-प्यासी मेरे भाई गेल्यां खेत म्ह लगी रहती। तूं मेरे भाई की रोटी दे आती पर वा घर आकै खुद बणाकै खाती। खैर छोड़ उन बातों नै। गोलू नै भेज दे।खा लेगी दो टूक।”
“अच्छा! मन्नै के थाहरे टूकों के भरोसे जाम राक्खी सै छोरी। म्हारे घर ना आइये आगे तैं, थाहरा-म्हारा नाता टूट लिया सै।”
“पर इसम्ह इस बिचारी बालक नै क्यूं उलझावै सै तूं? इसनै मालपूड़े इतणे पसंद सैं के तड़के खात्तर बचाण की भी कहवै थी।इस कन्या नै जो हम भरपेट नहीं खिला सके तो त्यौहार मनावण का फायदा के भाभी?”

Language: Hindi
616 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
स्पेशल अंदाज में बर्थ डे सेलिब्रेशन
स्पेशल अंदाज में बर्थ डे सेलिब्रेशन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
नया सवेरा
नया सवेरा
AMRESH KUMAR VERMA
*****नियति*****
*****नियति*****
Kavita Chouhan
जिसने अपनी माँ को पूजा
जिसने अपनी माँ को पूजा
Shyamsingh Lodhi (Tejpuriya)
कठिन परिश्रम साध्य है, यही हर्ष आधार।
कठिन परिश्रम साध्य है, यही हर्ष आधार।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
कविता तुम क्या हो?
कविता तुम क्या हो?
निरंजन कुमार तिलक 'अंकुर'
रैन  स्वप्न  की  उर्वशी, मौन  प्रणय की प्यास ।
रैन स्वप्न की उर्वशी, मौन प्रणय की प्यास ।
sushil sarna
"परिवर्तन"
Dr. Kishan tandon kranti
" यकीन करना सीखो
पूर्वार्थ
"कुछ तो गुना गुना रही हो"
Lohit Tamta
पड़ते ही बाहर कदम, जकड़े जिसे जुकाम।
पड़ते ही बाहर कदम, जकड़े जिसे जुकाम।
डॉ.सीमा अग्रवाल
*चलो टहलने चलें पार्क में, घर से सब नर-नारी【गीत】*
*चलो टहलने चलें पार्क में, घर से सब नर-नारी【गीत】*
Ravi Prakash
2720.*पूर्णिका*
2720.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
गाली भरी जिंदगी
गाली भरी जिंदगी
Dr MusafiR BaithA
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ
देखता हूँ बार बार घड़ी की तरफ
gurudeenverma198
थक गई हूं
थक गई हूं
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
दिगपाल छंद{मृदुगति छंद ),एवं दिग्वधू छंद
दिगपाल छंद{मृदुगति छंद ),एवं दिग्वधू छंद
Subhash Singhai
स्त्रीत्व समग्रता की निशानी है।
स्त्रीत्व समग्रता की निशानी है।
Manisha Manjari
एहसास
एहसास
Dr fauzia Naseem shad
ताउम्र लाल रंग से वास्ता रहा मेरा
ताउम्र लाल रंग से वास्ता रहा मेरा
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
💐प्रेम कौतुक-204💐
💐प्रेम कौतुक-204💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
उलझनें हैं तभी तो तंग, विवश और नीची  हैं उड़ाने,
उलझनें हैं तभी तो तंग, विवश और नीची हैं उड़ाने,
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
Work hard and be determined
Work hard and be determined
Sakshi Tripathi
ये दुनिया है आपकी,
ये दुनिया है आपकी,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
सावरकर ने लिखा 1857 की क्रान्ति का इतिहास
सावरकर ने लिखा 1857 की क्रान्ति का इतिहास
कवि रमेशराज
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
आकाश महेशपुरी
कविता: जर्जर विद्यालय भवन की पीड़ा
कविता: जर्जर विद्यालय भवन की पीड़ा
Rajesh Kumar Arjun
Behaviour of your relatives..
Behaviour of your relatives..
Suryash Gupta
■ आज की बात....!
■ आज की बात....!
*Author प्रणय प्रभात*
सपनों के सौदागर बने लोग देश का सौदा करते हैं
सपनों के सौदागर बने लोग देश का सौदा करते हैं
प्रेमदास वसु सुरेखा
Loading...