”वह ”(कविता)
वह है मेरी आँखों में,
इस तरह क़ैद।
मेरे आंसुओं के हर एक ,
कतरे में समाया हुआ।
वह है मेरी साँसों में,
फूलों सा महकता हुआ।
वह है मेरे रगों में लहू ,
बनकर बहता हुआ।
जैसे सागर की लहरें ,
हिल्लोरे मारती हुईें।
वह मेरे स्वर में,
पंछियों के सूर-ताल जैसे ,
झरनों की कल-कल जैसे ।
वह है मेरा प्राण ,
मेरी रूह ,
मेरे नसीब ,
की तरह वैसे ही ज़रूरी ,
जैसे की मनुष्य की जीवनी शक्ति।
वह है मेरी आहों में,
मेरे दर्द में,
पीड़ा में,
वह है तो मेरे ज़ज्बातों में।
मगर वहां नहीं पहुँच सकते ,
कोई आवारा ख़यालात।
वह है मेरे दिल की धड़कनें।
जिसके बिना मैं हूँ मात्र शून्य ,
वह है मेरा कान्हा ,
वह है मेरा जीवन।