वही पल – पल सताता है जिसे जितना भुलाता हूँ
बेवफा थी मगर उसके घर तक गया ।
मानकर प्रेम पावन शिखर तक गया ।
वो न समझी तो’ इसमे खता क्या मेरी,
आस दिल में जगा साल भर तक गया ।(हास्य )
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बनाकर ख्वाब को कैदी नयन भरकर सुलाता हूँ ।
मुझे खुद ही नहीं मालूम मैं किसको बुलाता हूँ ।
मगर बेचैन सी होकर किसी को ढूँढती नजरें,
वही पल – पल सताता है जिसे जितना भुलाता हूँ ।
– – – – – @विवेक आस्तिक