वन्दे मातरम
सावन का अंधा हूँ
हर ओर हरा नज़र आएगा,
माँ से प्यार करता हूँ
देशद्रोहियो को नही भायेगा
उन्हें शर्म आती है
भारत को भारत माँ कहने पर
भगत और बिस्मिल का देश
न जाने कौन सी दिशा जाएगा
जिस वंदे मातरम ने
गुलामी से आज़ादी दिलवाई
उसका अर्थ आज़ादी में जन्मे
बेवकूफो कब समझ आएगा
था कोई जो कह गया
पुनर्जन्म लिखा होता मज़हब में
तो माँ के लिए फिर से
फांसी पर चढ़ जाऊँगा
सावन का अंधा हूँ
हर ओर हरा नज़र आएगा
माँ से प्यार करता हूँ
देशद्रोहियो को नही भायेगा
कवि : अजय “बनारसी”