वतन पर मिटने को चल पड़े हैं।
छोड़ हसरतें पीछे निकल
मां तेरे चरणों मे हम मुस्तैद खड़े हैं
खा कर कसम माटी की
दुश्मनों का सर कलम करने पर अड़े हैं
आज हम अपने वतन मर मिटने को
अपनों को भूल चल पड़े हैं
करके हर मुश्किलों का सामना
उनकी हर कोशिशों से बड़े हैं
भेद न पाये हमारी छाती को
हममें वो अभेद्य कवच जड़े हैं
याद रखना तेरी वो हर बेईमानियां
हर बात की वादाखिलाफियां
झूठ की नींव पर खड़ी तेरी
उस इमारत को ढहाने चल पड़े हैं।