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6 Aug 2017 · 1 min read

वजूद

जब कभी कुछ सोचा
चाहा कुछ करने को,
लाखों अर्चनें खड़े हुए
पथ मेरे रोकने को,
समझ कंकड़ मुझे सब
हर कोई फेंक देते
कुएँ-तालाब में,
आँखो में चुभ जाता
हूँ जैसे कोई काँटा
या धूल इस जहाँ में;
क्या कहूँ ऐ खुदा
भाग भी भागे कोसों दूर,
वजूद पुछे मुझसे आज
कौन है, तेरा यहाँ क्या काज ?

Language: Hindi
438 Views
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