Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 May 2017 · 3 min read

लो फिर आ गया आत्महत्याओं का मौसम

अभी दसवीं तथा बारहवीं का परीक्षा परिणाम आये एक दिन भी नहीं हुए हैं. हमें अपने आस पास और साथ ही दूर दूर सभी जगह से एक साथ, एक ही तरह की खबरें सुनाई दे रही हैं. किसी छात्र ने परीक्षा में फेल होने के कारण फाँसी लगा ली या किसी छात्रा ने परीक्षा में कम नंबर आने के कारण जहर खा लिया. अगर हम कोई लोकल पेपर उठायें तो इस तरह की खबरों से पेपर भरा मिलेगा. पिछले कुछ सालों का आत्महत्याओं का डाटा देखने पर पता चलता है कि ज्यादातर छात्रों ने आत्महत्या मई से लेकर जुलाई के महीनों में ही की हैं. क्यूँ? क्यूंकि इन्हीं महीनों में परीक्षाओं के परिणाम घोषित होते हैं.

मध्य प्रदेश में बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम आने के बाद उसी दिन एक के बाद एक 12 बच्चों ने आत्महत्या कर ली. कुछ बच्चों ने महज इसलिए खुदकुशी कर ली क्योंकि उन्हें 90% मार्क्स मिलने की उम्मीद थी. इन 12 बच्चों में से 2 सगे भाई-बहन भी हैं जिन्होंने 12 और 10 वीं की परीक्षा में असफल होने के कारण अपनी जान दे दी.

आखिर क्यूँ बच्चे इतने अवसाद में हैं कि उन्हें भगवान कि दी हुई इस जिन्दंगी से भी प्यार नहीं रहा. या यूँ कहे कि हम परिवार वालों की आकांक्षायें इतनी बढ गई हैं कि हम उन पर जरुरत से ज्यादा बोझ डाल रहे हैं, जिसे बच्चे सहन नहीं कर पा रहे हैं और टूट के बिखर रहे हैं.

आज सभी अभिभावक अपने बच्चों को ग्रेडिंग की अंधी दौड़ में हाँक रहे हैं. 90% अंक लाने पर भी बच्चों पर और ज्यादा अंक लाने के दबाव डालते हैं. सभी अभिभावक यहीं चाहते हैं कि उनका बेटा-बेटी डॉक्टर या इंजिनियर बने (अगर सभी डॉक्टर बन जायेंगे तो कौन किसका इलाज़ करेगा?). प्रतियोगिता की दौड़ में हम इतने अंधे हो गए हैं कि बस हम सभी यहीं चाहते हैं कि हमारा बच्चा ही सभी परीक्षाओं में प्रथम आये. हम ये भी नहीं सोचते कि हमारे बच्चे क्या चाहते हैं, उसकी क्षमता क्या हैं या उसकी रूचि किसमें हैं. हम तो बस यहीं जानते हैं कि हमें उन्हें क्या बनाना है. ये अच्छी बात है कि हम उनका मार्गदर्शन करें, पर ये भी ठीक नहीं कि हम उन पर अपना निर्णय थोपे.

जब भी मैं किसी छात्र के आत्महत्या कि खबर पढ़ती हूँ तो मेरी आँखें भीग जाती हैं और मुझे श्रुति की याद आ जाती है. श्रुति, मेरी सबसे अच्छी थी. बहुत ही अच्छी कलाकार. पेंटिंग इतना अच्छा करती थी कि बड़े-बड़े कलाकार भी उसके आगे फेल थे. बिना सीखे ही वो सिंथेसाइज़र पर कोई भी गाना बस सुनकर ही हुबहू बजा लेती थी. पर उसके डॉक्टर मम्मी- पापा को इससे कोई मतलब नहीं था. वो तो अपनी इकलौती बेटी को बस डॉक्टर बनाना चाहते थे. और सालों पहले वो अपने मम्मी-पापा के सपनों को पूरा न कर पाने के बोझ तले दबकर इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गई.

इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा देने में आजकल की कामकाजी एकल परिवार व्यवस्था भी काफी हद तक जिम्मेदार है. पहले हम सभी संयुक्त परिवार में रहते थे. दादा-दादी, चाचा-चाची का प्यार हमें मिलता रहता था. पर आजकल एकल परिवार का चलन बढ़ने से बच्चे मानसिक रूप से उतने मजबूत नहीं बन पाते हैं, उनमें सहनशीलता भी बहुत कम रह गई है. छोटी छोटी बात पर बच्चे अपने आप को टूटा हुआ महसूस करते हैं, हारा हुआ समझते हैं. आजकल की शिक्षा व्यवस्था भी इसके लिए उतनी ही जिम्मेदार है.

अब वो समय आ गया है कि हर माँ-बाप को बैठकर ये सोचना चाहिए कहीं हम बच्चों पर अपने सपने थोप तो नहीं रहे हैं और उन्हें आत्महत्या की इस राह में धकेल तो नहीं रहे हैं. हर बच्चे की अलग-अलग क्षमता होती है, अलग रूचि होती है. आप पहले देखें, समझे कि आपके बच्चे की रूचि किसमें है. उसे बढ़ावा दें और फिर देखें, जरुर आपका बच्चा उस क्षेत्र में अपना नाम कमाएगा और आपका नाम रोशन करेगा. नम्बरों की इस अंधी दौड़ से बाहर आएं.

लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल (म. प्र.)

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 572 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ख़ामोशी
ख़ामोशी
कवि अनिल कुमार पँचोली
दान किसे
दान किसे
Sanjay ' शून्य'
टूटे बहुत है हम
टूटे बहुत है हम
The_dk_poetry
इंसान स्वार्थी इसलिए है क्योंकि वह बिना स्वार्थ के किसी भी क
इंसान स्वार्थी इसलिए है क्योंकि वह बिना स्वार्थ के किसी भी क
Rj Anand Prajapati
*
*"माँ"*
Shashi kala vyas
*साँस लेने से ज्यादा सरल कुछ नहीं (मुक्तक)*
*साँस लेने से ज्यादा सरल कुछ नहीं (मुक्तक)*
Ravi Prakash
अध्यापक दिवस
अध्यापक दिवस
SATPAL CHAUHAN
रिमझिम बारिश
रिमझिम बारिश
Anil "Aadarsh"
मर्यादा और राम
मर्यादा और राम
Dr Parveen Thakur
🌹*लंगर प्रसाद*🌹
🌹*लंगर प्रसाद*🌹
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
जिन्दगी में कभी रूकावटों को इतनी भी गुस्ताख़ी न करने देना कि
जिन्दगी में कभी रूकावटों को इतनी भी गुस्ताख़ी न करने देना कि
Sukoon
कभी हुनर नहीं खिलता
कभी हुनर नहीं खिलता
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
"मदद"
*Author प्रणय प्रभात*
23/182.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/182.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
अधूरी मुलाकात
अधूरी मुलाकात
Neeraj Agarwal
बिन पैसों नहीं कुछ भी, यहाँ कद्र इंसान की
बिन पैसों नहीं कुछ भी, यहाँ कद्र इंसान की
gurudeenverma198
"मैं" के रंगों में रंगे होते हैं, आत्मा के ये परिधान।
Manisha Manjari
पैसा
पैसा
Kanchan Khanna
कहती गौरैया
कहती गौरैया
Dr.Pratibha Prakash
चेहरे पे लगा उनके अभी..
चेहरे पे लगा उनके अभी..
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
*उम्र के पड़ाव पर रिश्तों व समाज की जरूरत*
*उम्र के पड़ाव पर रिश्तों व समाज की जरूरत*
Anil chobisa
आधा किस्सा आधा फसाना रह गया
आधा किस्सा आधा फसाना रह गया
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
💐प्रेम कौतुक-180💐
💐प्रेम कौतुक-180💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
"छछून्दर"
Dr. Kishan tandon kranti
एक एहसास
एक एहसास
Dr fauzia Naseem shad
बेशर्मी से रात भर,
बेशर्मी से रात भर,
sushil sarna
कविता
कविता
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
कुछ यादें कालजयी कवि कुंवर बेचैन की
कुछ यादें कालजयी कवि कुंवर बेचैन की
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
फिर वो मेरी शख़्सियत को तराशने लगे है
फिर वो मेरी शख़्सियत को तराशने लगे है
'अशांत' शेखर
कौशल कविता का - कविता
कौशल कविता का - कविता
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
Loading...