लेके अँगड़ाई हमको लुभातए रहे
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ग़ज़ल
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फ़र्ज़ अपना हमेशा निभाते रहे
जो वतन पे दिलो जां लुटाते रहे
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देश की मैं हिफ़ाज़त करूँ उम्र भर
ख़ाब दिन रात हमको ये आते रहे
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प्यार उनको न सच्चा लगा है कभी
उम्र भर वो हमें आज़माते रहे
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नींद तो दूर कोसों हुईं आँख से
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रहे
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आदमी खुद न झाँके गिरेबान में
आइने को ही झूठा बताते रहे
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पास आते नहीं बस हमें दूर से
लेके अँगड़ाई हमको लुभाते रहे
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एक बिजली गिरी जल गया आशियाँ
राख़ लेकर वो बरतन धुलाते रहे
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देके खुशियां उन्हें हम मेरे जीस्त की
जिन्दगी भर हम उनको हँसाते रहे
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कैसे किरची में ये दिल बिख़रता नहीं
पत्थरों से ही दिल जब लगाते रहे
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देख कर हुस्न अँगूर के बेटी की
ये क़दम खुद ब खुद डगमगाते रहे
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वो समझते न “प्रीतम” मेरी तिश्नग़ी
जाम क़तरों में ही बस पिलाते रहे
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प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
11//08//2017
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