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29 Sep 2017 · 1 min read

लफ़्ज़ो में न दफ्नाओ

दो क्षणिकायें अलग अलग संदर्भों में प्रस्तुत हैं आशा है पसंद आयेंगी।
——————
लफ़्ज़ों में न दफ्नाओ
—————
लफ़्ज़ों में
न दफ्नाओ
मेरे जज़्बातों को
कहना है अभी
बहुत कुछ उनको
धीरे धीरे
——————–
राजेश”ललित”शर्मा
———————
कश्ती ही तो है
डुबो देगी
या छोड़ देगी साहिल पर
हमने तो तूफ़ान देख कर
उतारी है कश्ती मँझधारे में
————————-
राजेश”ललित”शर्मा

Language: Hindi
5 Likes · 1 Comment · 218 Views
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