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10 Jun 2017 · 1 min read

“लड़ता हूँ”

अब लड़ता नहीं यार जीतने के लिए।
लङता हूं बस दिल बहलाने के लिए।

जीत जीत कर थक चुका हूं मेरे हमदम।
अब लड़ता हूं बस तुझे जिताने के लिए।

हर मंजिल की जीत करती रही एक नया प्रश्न।
तो अब लड़ता हूँ मन समझाने के लिए।

दुनिया के सारे गम मुझे अपने ही लगे।
सो लड़ता रहूंगा बस इस जमाने के लिये।

दुनिया में ना मिला कोई अपना हमसफर मुझे।
अब लड़ता हूं तेरे दिल मे आशियाने के लिए।

प्रशांत शर्मा “सरल”
नरसिंहपुर

1 Comment · 499 Views
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