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5 May 2017 · 1 min read

ऱिश्तों की पहचान

कैसे भूलूँ आपका, मै दुर्दिन अहसान !
सहज कराई आपने,रिश्तों की पहचान ! !

एक दूसरे का करें,आपस मे सम्मान !
ऐसी होनी चाहिए,रिश्तों की पहचान !!

बँधा स्वार्थ की डोर से,जँह रमेश इन्सान !
वहाँ सहज होती नही,रिश्तों की पहचान ! !
रमेश शर्मा.

जैसी अपनी जान है, …वैसी सबकी जान !
समझेगा कब सत्य यह, कलयुग का इन्सान ! !

रिश्तों की इस दौर मे,यही एक पहचान !
किसको कितना फायदा,कितना है नुकसान !!
रमेश शर्मा.

Language: Hindi
1 Like · 302 Views
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