रिश्ते
किसी ने पूछा हमसे एक सवाल,
क्यों करते उन्हें तुम इतना याद
जो अपनी करनी से आज खुल चूके हैं
हकीकत तो दूर सपनों में भी भूल चूके है।
बतादो मेरे भाई आखिर क्यों हो तुम उदास
उनके बिना क्यों ऐसे बने हो देवदास।
क्या उनसे तुम्हारा कोई पुराना नाता है
या दुकान में तेरे उनका उधारीयों का खाता है?
मैने कहाँ सुन मेरे भाई
ना कोई उससे मेरा पुराना नाता है
ना ही मैं दुकानदार ना उसका खाता है।
एक रिश्ता है एहसास का
हृदय में उठते जजबात का
दिलों के रिश्ते भुलाये नहीं जाते
जज्बात से बने रिश्ते बतलाये नहीं जाते।
वो याद करें न करें कोई बात नहीं
मुकाबलों से रिश्ते चलाये नहीं जाते।।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”