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4 Dec 2016 · 1 min read

रिटायर्ड

रिटायरर्ड

भवानी बाबू अवकाशग्रहण के करीब तीन माह  बाद अपने पुराने दफ्तर आए थे. सोंचा चलो उन लोगों से मिल लें जिनके साथ पहले काम किया था. कितनी धाक थी उनकी यहाँ. सब उन्हें देख कर खड़े हो जाते थे. किंतु आज सभी अपने काम में लगे रहे. कुछ एक लोगों ने बैठे बैठे ही मुस्कुराहट उछाल दी.
चपरासी जो उन्हें देखते ही दौड़ता था आज नजरें चुरा रहा था. उन्होंने ही आगे बढ़ कर उसका हाल पूंछा तो उसने भी नमस्ते कर दी.
भवानी बाबू ने कहा “मकरंद साहब भीतर हैं क्या.”
“हाँ भीतर हैं.” चपरासी ने उत्तर दिया.
मकरंद भवानी बाबू का जूनियर था. उनके अवकाशग्हण के बाद आज उनके रिक्त किए गए पद पर था. मकरंद अक्सर कहा करता था कि भवानी बाबू को वह अपना आदर्श मानता है.
दस्तक देकर वह भीतर चले गए. उन्हें देख कर वह अपनी जगह पर बैठे हुए ही बोला “आइए भवानी बाबू. कोई काम था क्या.”
“नहीं बस यूं ही मिलने आ गया.”
“क्या करें आजकल तो ज़रा भी फुर्सत नहीं मिलती. बहुत काम है. आप कुछ लेंगे” मकरंद ने काम करते हुए कहा.
“नहीं, चलता हूँ.” कहते हुए भवानी बाबू कमरे के बाहर आ गए.

Language: Hindi
2 Comments · 219 Views
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