राजनीति के छल-कपट,
संग तुम्हारा छोड़ के,कहीं न जाती नाथ
गठबन्धन निभती रहे ,राजनीति के साथ
भरसक अपना है अभी,इतना महज प्रयास
रूठी जनता से मिले ,वोट हमी को ख़ास
कल थे वे जो रूबरू ,जन सेवक बन बीच
आज अपनी नीयत से,बन बैठे हैं नीच
रेखा कभी- कहाँ खिंची,परंपरा के खेल
देखो जला मशालची,जितनी-जी भर तेल
अवगुन पीछे छोड़ कर ,गुन की करे बखान
राजनीति के छल-कपट, लंपट खुली दुकान
सुशील यादव