Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Feb 2017 · 3 min read

रमेशराज के हास्य बालगीत

|| रामलीला ||
———————-
बंदर काका हनुमान थे
बने रामलीला में

दिखा रहे थे वहां दहन के
खुब काम लीला में।

जलती हुई पूंछ से उनकी
छूटा एक पटाखा

चारों खाने चित्त गिर गये
फौरन बंदर काका।

मारे डर के थर-थर कांपे
फिर तो काका बंदर,

साथी-संगी उन्हें ले गए
तुरत मंच से अंदर।
+रमेशराज

|| बन्दर मामा ||
—————————–
बन्दर मामा पहन पजामा
इन्टरब्यू को आये

इन्टरब्यू में सारे उत्तर
गलत-गलत बतलाये।

ऑफीसर भालू ने पूछा
क्या होती ‘हैरानी’

बन्दर बोला- मैं हूँ ‘राजा’
बन्दरिया ‘है रानी’।

भालू बोला ओ राजाजी
भाग यहाँ से जाओ

तुम्हें न ‘बाबू’ रख पाऊँगा
घर पर मौज मनाओ।
+रमेशराज

|| बंदर की दाढ़ी ||
…………………….
चुपके-चुपके देख रहा था
छत से बूढ़ा बंदर

दाढ़ी बना रहे हैं काका
बैठे घर के अंदर

उसका जी ललचाया, मैं भी
दाढ़ी आज बनाऊँ

काका की ही तरह गाल पर
साबुन खूब लगाऊँ |

मार झपट्टा काका जी से
छीन ले गया रेजर

लगा बनाने दाढ़ी बंदर
झट से छत के ऊपर।

गाल कटा बेचारे का तो
चीखा औ’ चिल्लाया

दौड़ो-दौड़ो मुझे बचाओ
उसने शोर मचाया।
+रमेशराज

।। मोटूराम।।
——————————
सीधे-सादे भोले-भाले
तनिक न नटखट मोटूराम।

मिलजुल के रहते हैं सबसे
करें न खटपट मोटूराम।

धीरे-धीरे चलें राह में
भरें न सरपट मोटूराम।

बर्फी,लड्डू, और जलेबी
खाते झटपट मोटूराम।

ढेरों पानी पी जाते फिर
गट-गट, गट-गट मोटूराम।

बड़ी तोंद से मुश्किल आती
लेते करवट मोटूराम।
-रमेशराज

|| मिली नहीं ससुराल ||
………………………………..
पत्नी को लेने चले मेंढ़कजी ससुराल
सर से अपने बांधकर एक हरा रूमाल

एक हरा रूमाल, हाथ में लेकर डंडा
दिखने में लगते जैसा मथुरा के पंड़ा,

मथुरा से लेकर टिकिट बम्बई का तत्काल,
बैठ फन्टियर मेल में पहुंच गये भोपाल,

पहुंच गए भोपाल सोचें कहां आ गए?
मिली नहीं ससुराल बिचारे चक्कर खा गए।
+रमेशराज

|| तोंद ||
…………………………..
किसी-किसी की छोटी तोंद,
और किसी की मोटी तोंद।

किसी-किसी की तोंद निराली,
खाओ जितना, उतनी खाली।

लाला जब रसगुल्ले खाते,
भरी तोंद पर हाथ फिराते।

चौबे जी की ऐसी तोंद,
वे हंसते तो हंसती तोंद।

तोंद दिखाये बड़े कमाल,
चट कर जाती सारा माल।

काका जब खर्राटे भरते,
तोंद को ऊपर-नीचे करते।

तोंद बढ़े तो मुश्किल चलना,
पहन के कपड़े, उन्हें बदलना।

रिक्शे वाला नहीं बिठाये,
देख तोंद को झट डर जाये।

बड़ी तोंद की महिमा न्यारी
तीन सीट पर एक सवारी।
+रमेशराज

।। जोकर।।
——————————–
सबको खूब हंसाता जोकर
सूरत अजब बनाता जोकर।

ठुमक-ठुमक औ’ नाच-नाच कर
डमरू-बीन बजाता जोकर।

सिक्का एक चार में बदले
दो को बीस बनाता जोकर।

आओ-आओ सर्कस देखो
यह आवाज लगाता जोकर।
-रमेशराज

।। मूँछें ।।
——————————-
तरह-तरह की होती मूँछें
मोटी लम्बी चौड़ी मूँछें।

किसी-किसी की काली मूँछें
और किसी की भूरी मूँछें।

होली पर बच्चों के दिखतीं
रंग-विरंगी नकली मूँछें।

कोई रखता इन्हें तानकर
और किसी की नीची मूँछें।

किसी-किसी के दिख जाती हैं
अब भी हिटलर जैसी मूँछें।

कैसी लगती तब महिलाएं
जब उनके भी होती मूँछें!

कोई मन ही मन मुस्काता
रख तलवार सरीखी मूँछें।
-रमेशराज

।। जोकर ।।
सबको खूब हँसाता जोकर
गर्दभ-स्वर में गाता जोकर।

ताक धिनाधिन ताता थइया
सबको नाच दिखाता जोकर।

छह फुट की दाढ़ी के ऊपर
लम्बी मूँछ लगाता जोकर।

लुढ़क-लुढ़क कर खूब मंच पर
कलाबाजियाँ खाता जोकर।

खड़िया गेरू से मुँह रँगकर
सूरत अजब बनाता जोकर।

एक साथ में सौ पाजामे
पहन मंच पर आता जोकर।

सब रह जाते हक्के-बक्के
दो फुट तोंद फुलाता जोकर।
-रमेशराज

।। तोंद ।।
ढेरों लड्डू खाती तोंद
पर भूखी रह जाती तोंद।

जब कोई खर्राटे भरता
कत्थक नृत्य दिखाती तोंद।

गुब्बारे जैसी तन जाती
जब पूरी भर जाती तोंद।

लोटपोट हों सभी देखकर
जोकर-सी इठलाती तोंद।
-रमेशराज

।। अप्रिल-फूल मनायें ।।
——————————–
करें शरारत लेकिन ढँग से
कोई जिसका बुरा न माने
ठेस न किसी सु-मन को पहुँचे
भूल न हो जाये अन्जाने
कोयल जैसा मधुर बोलकर
यारो हम सब हँसे-हँसायें
आओ अप्रिल फूल बनायें।

झूठ-मूठ को हम रोते हैं
आओ धरती पर सोते हैं
पानी के चिपकाकर आँसू
थोड़ा-सा दुःखमय होते हैं
देख हमारी रोनी सूरत
अम्मा-दादी दौड़ी आयें
आओ अप्रिल-फूल मनायें।

खाने बैठें जब पापा तो
फौरन सी-सी,सी-सी बोलें
मम्मी भागी-भागी आयें
चीनी का झट डब्बा खोलें
आलू की सब्जी में आओ
थोड़ी-सी अब मिर्च मिलायें
आओ अप्रिल-फूल मनाएँ।
-रमेशराज
————————————————————
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001

Language: Hindi
1256 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
■ सरोकार-
■ सरोकार-
*Author प्रणय प्रभात*
कितना प्यार
कितना प्यार
Swami Ganganiya
भोर
भोर
Omee Bhargava
"मैं" का मैदान बहुत विस्तृत होता है , जिसमें अहम की ऊँची चार
Seema Verma
वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड, द्वितीय सर्ग में राम द्वा
वाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड, द्वितीय सर्ग में राम द्वा
Rohit Kumar
अब सुनता कौन है
अब सुनता कौन है
जगदीश लववंशी
"आत्मा"
Dr. Kishan tandon kranti
अगर कोई आपको मोहरा बना कर,अपना उल्लू सीधा कर रहा है तो समझ ल
अगर कोई आपको मोहरा बना कर,अपना उल्लू सीधा कर रहा है तो समझ ल
विमला महरिया मौज
" करवा चौथ वाली मेहंदी "
Dr Meenu Poonia
मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
मंजिले तड़प रहीं, मिलने को ए सिपाही
Er.Navaneet R Shandily
औरत की हँसी
औरत की हँसी
Dr MusafiR BaithA
मैत्री//
मैत्री//
Madhavi Srivastava
वृक्षों के उपकार....
वृक्षों के उपकार....
डॉ.सीमा अग्रवाल
इश्क का इंसाफ़।
इश्क का इंसाफ़।
Taj Mohammad
*हजारों साल से लेकिन,नई हर बार होली है 【मुक्तक 】*
*हजारों साल से लेकिन,नई हर बार होली है 【मुक्तक 】*
Ravi Prakash
*मेरी इच्छा*
*मेरी इच्छा*
Dushyant Kumar
अजब तमाशा जिन्दगी,
अजब तमाशा जिन्दगी,
sushil sarna
बचपन
बचपन
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
आज कुछ अजनबी सा अपना वजूद लगता हैं,
आज कुछ अजनबी सा अपना वजूद लगता हैं,
Jay Dewangan
आहत न हो कोई
आहत न हो कोई
Dr fauzia Naseem shad
दरदू
दरदू
Neeraj Agarwal
वरदान
वरदान
पंकज कुमार कर्ण
ये बात पूछनी है - हरवंश हृदय....🖋️
ये बात पूछनी है - हरवंश हृदय....🖋️
हरवंश हृदय
मीठी-मीठी माँ / (नवगीत)
मीठी-मीठी माँ / (नवगीत)
ईश्वर दयाल गोस्वामी
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
$úDhÁ MãÚ₹Yá
इल्जाम
इल्जाम
Vandna thakur
23/62.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/62.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
शेखर सिंह
शेखर सिंह
शेखर सिंह
दीप की अभिलाषा।
दीप की अभिलाषा।
Kuldeep mishra (KD)
Loading...