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21 May 2017 · 1 min read

रँग यहाँ अपना जमाया है बहुत दिन हमने

रँग यहाँ अपना जमाया है बहुत दिन हमने
राज अपना भी चलाया है बहुत दिन हमने

जश्न खुशियों का मना लेने दो कुछ पल हमको
गम भरा बोझ उठाया है बहुत दिन हमने

जख्म भी बन गया नासूर हमारे दिल का
इसको चुपचाप दबाया है बहुत दिन हमने

हार स्वीकार करें कैसे बताओ हमको
आस का दीप जलाया है बहुत दिन हमने

रेत सा फिसला ये हाथों से तभी समझे हम
वक़्त बेकार गँवाया है बहुत दिन हमने

आज उखड़े हैं कदम ‘अर्चना’ तो क्या गम है
आसमाँ सर पे उठाया है बहुत दिन हमने

डॉ अर्चना गुप्ता
09-05-2017

1 Like · 334 Views
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